कंगना रनौत की फिल्म इमरजेंसी विवादों में उलझ गई है। कांग्रेस तो इसके विरोध में है ही, भाजपा भी नहीं चाहती कि फिल्म रिलीज हो और बवाल बढ़े। इसके पीछे की वजह सिख विरोधी दृश्य हैं, जिनका पंजाब में विरोध हो रहा है। बांबे हाई कोर्ट में रिलीज पर गुरुवार को भी फैसला नहीं हो पाया। बॉम्बे हाई कोर्ट में ने सेंसर बोर्ड को फिल्म की रिलीज पर 25 सितंबर से पहले फैसला लेने का निर्देश दिया है। इस बीच फिल्म इमरजेंसी के सह-निर्माताओं ने गुरुवार को हाई कोर्ट को बताया कि बीजेपी सांसद कंगना रनौत की फिल्म को उनकी ही पार्टी के इशारे पर रिलीज होने से रोका जा रहा है।
हरियाणा चुनाव के बाद ही रिलीज की तैयारी
जस्टिस बर्गेस कोलाबावाला और जस्टसि फिरदौस पूनीवाला की बेंच को सुनवाई के दौरान बताया गया कि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी के इशारे पर अपने हितों की रक्षा कर रहा है, क्योंकि फिल्म को सिख विरोधी माना जा रहा है। निर्माता जी स्टूडियोज की ओर से दलील देते हुए सीनियर वकील वेंकटेश धोंड ने कहा कि सेंसर बोर्ड जानबूझकर फिल्म की रिलीज में देरी कर रहा है। वह चाहता है कि फिल्म इस साल अक्टूबर में हरियाणा में होने वाले चुनावों के बाद ही रिलीज हो।
कोर्ट ने पूछा-क्या फिल्म से वोट पर असर पड़ेगा?
वकील धोंड ने अदालत से कहा कि फिल्म की को-प्रोड्यूसर कंगना रनौत बीजेपी की सांसद हैं और उनकी पार्टी नहीं चाहती कि उनके ही सदस्य द्वारा बनाई गई ऐसी फिल्म अभी रिलीज हो, जो कुछ समुदायों की भावनाओं को ठेस पहुंचाए। जस्टिस कोलाबावाला ने कहा कि तो आपका मतलब यह है कि इससे बीजेपी को वोट देने वाले लोगों के मतदान के फैसले पर असर पड़ेगा? अगर राज्य में कोई अन्य विपक्षी दल होता, तो हम इस पर विचार कर सकते थे।
जज ने दिया उदाहरण, फिल्म से कैसे प्रभावित होते हैं लोग
जस्टिस कोलाबावाला ने पूछा कि फिल्मों में किसी को इस तरह दिखाने से लोग कैसे और क्यों प्रभावित होते हैं? खुद पारसी समुदाय से आने वाले जस्टिस ने कहा कि लगभग हर फिल्म में मेरे समुदाय का मजाक उड़ाया जाता है। हम हंसते हैं और यह नहीं मानते कि यह हमारे समुदाय के खिलाफ है।