अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा ईरान के चाबहार बंदरगाह परियोजना पर भारत को दी गई प्रतिबंधों से छूट वापस लेने के बाद, ये प्रतिबंध सोमवार, 30 सितंबर को आधिकारिक तौर पर लागू हो गए हैं। यह घटनाक्रम भारत के लिए बड़ी चिंता का विषय है, क्योंकि इस सामरिक रूप से महत्वपूर्ण परियोजना में भारत का अरबों डॉलर का निवेश फंसा हुआ है।
भारत पर सीधा असर और अमेरिका से तनाव
- प्रतिबंधों की वापसी: ट्रंप प्रशासन ने 16 सितंबर को 2018 में चाबहार बंदरगाह के संबंध में भारत को दी गई प्रतिबंधों से छूट वापस ले ली थी। ये प्रतिबंध अब ईरान स्वतंत्रता एवं प्रसार-रोधी अधिनियम (IFCA) के तहत लागू हो गए हैं।
- निवेश पर खतरा: भारत ने पिछले एक दशक में अफगानिस्तान और पश्चिम एशिया तक कनेक्टिविटी के लिए चाबहार में 500 से 600 मिलियन डॉलर का भारी निवेश किया है। ये प्रतिबंध भारत के पूरे रणनीतिक प्लान को जोखिम में डाल रहे हैं।
- ऑपरेशनल मुश्किलें: चाबहार पोर्ट का संचालन करने वाली सरकारी स्वामित्व वाली इंडिया पोर्ट ग्लोबल लिमिटेड सहित भारतीय संस्थाओं को अब आपूर्तिकर्ता और फाइनेंसर खोजने में मुश्किल होगी।
- संबंधों में तनाव: टैरिफ जैसे कई मुद्दों पर पहले से ही तनावपूर्ण चल रहे भारत-अमेरिका संबंध इस घटनाक्रम से और बिगड़ सकते हैं।
ट्रंप प्रशासन का उद्देश्य और समय सीमा
ट्रंप प्रशासन का कहना है कि इन प्रतिबंधों का मकसद चाबहार परियोजना को आपूर्ति और फंड से वंचित कर ईरान पर दबाव बनाना है।
- प्रतिबंधों के तहत, चाबहार परियोजना में शामिल भारतीय और विदेशी कंपनियों के पास बंदरगाह से बाहर निकलने के लिए 45 दिन का समय होगा।
- ऐसा न करने पर अमेरिका स्थित उनकी सभी संपत्तियां जब्त कर ली जाएंगी और अमेरिकी लेनदेन पर रोक लगा दी जाएगी।
- एक कानूनी फर्म के विशेषज्ञ ने बताया कि किसी भारतीय फर्म को प्रतिबंधित सूची में शामिल करने से व्यापक प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि बैंक और अन्य कंपनियां नामित व्यवसाय के साथ लेन-देन नहीं कर पाएंगी।
भारत के लिए रणनीतिक महत्व और विशेषज्ञ राय
चाबहार पोर्ट का भारत के लिए गहरा रणनीतिक महत्व है। यह न केवल भारत को कई देशों तक सीधी पहुंच देता है, बल्कि यह पाकिस्तान के चीन समर्थित ग्वादर बंदरगाह का मुकाबला करने में भी महत्वपूर्ण है।
विशेषज्ञों का कहना है कि:
- भारत को फिलहाल इन प्रतिबंधों से सीधे तौर पर नुकसान होता दिख रहा है।
- हालांकि, ये प्रतिबंध अमेरिका के लिए “आत्मघाती” साबित हो सकते हैं, क्योंकि ये भारत को अमेरिका पर आर्थिक निर्भरता कम करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
- भारत इन चुनौतियों के जवाब में चीन-रूस ब्लॉक के वैकल्पिक बैंकिंग और वित्तपोषण नेटवर्क की ओर कदम बढ़ा सकता है, जिससे पश्चिमी-नियंत्रित वित्तीय नेटवर्क से अलग होने का प्रयास किया जाएगा।
क्या इन प्रतिबंधों के चलते भारत अपनी चाबहार परियोजना को बचाने के लिए अमेरिका के साथ राजनयिक दबाव बढ़ाएगा?