ट्रंप प्रशासन के एक नए कार्यकारी आदेश के तहत, एच-1बी वीजा पर $100,000 (लगभग 88 लाख रुपये) का भारी शुल्क लगाया गया है, जिसका सीधा असर भारतीय आईटी कंपनियों जैसे टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), इंफोसिस, विप्रो, और टेक महिंद्रा पर पड़ेगा। ये कंपनियां अपने परिचालन के लिए बड़ी संख्या में एच-1बी वीजा पर निर्भर करती हैं। यह आदेश 12 महीने तक लागू रहेगा।
भारतीय कंपनियों पर क्यों पड़ेगा असर?
भारतीय आईटी कंपनियां, खासकर टीसीएस, इंफोसिस, और विप्रो, अमेरिका में अपने प्रोजेक्ट्स के लिए बड़ी संख्या में भारतीय प्रोफेशनल्स को भेजती हैं। ये प्रोफेशनल्स आमतौर पर एच-1बी वीजा का उपयोग करते हैं।
- लागत में बढ़ोतरी: नए आदेश के बाद, हर एच-1बी वीजा के लिए $100,000 का अतिरिक्त शुल्क देना होगा, जिससे कंपनियों की परिचालन लागत में काफी बढ़ोतरी होगी। यह उनके लिए भारत से कर्मचारियों को अमेरिका भेजना बहुत महंगा बना देगा।
- बिजनेस मॉडल में बदलाव: ये कंपनियां अक्सर कम लागत पर सेवाएं देने के लिए एच-1बी वीजा पर निर्भर करती हैं। इस नई नीति से उन्हें अपने बिजनेस मॉडल पर फिर से विचार करना पड़ सकता है।
- स्थानीय हायरिंग पर दबाव: बढ़ती लागत के कारण, कंपनियों को अमेरिका में ही स्थानीय कर्मचारियों को हायर करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है, जो उनके लिए एक नई चुनौती होगी।
कुछ उदाहरण
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कुछ भारतीय कंपनियों को 2025 में 5,000 से अधिक एच-1बी वीजा मिले, जबकि उसी दौरान उन्होंने अमेरिका में 15,000 कर्मचारियों की छंटनी की। इसी तरह, एक अन्य कंपनी ने 1,700 वीजा प्राप्त किए लेकिन 2,400 अमेरिकी कर्मचारियों को नौकरी से निकाला। ट्रंप प्रशासन का कहना है कि इस कदम का उद्देश्य वीजा सिस्टम का दुरुपयोग रोकना और अमेरिकी श्रमिकों के हितों की रक्षा करना है। हालांकि, आलोचकों का मानना है कि इसका बड़ा नुकसान भारतीय आईटी क्षेत्र को होगा।