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    शाही और पेशवाई शब्द गुलामी के प्रतीक.. प्रयागराज महाकुंभ में बदले जाएंगे नाम

    उप्र की संगमनगरी प्रयागराज में महाकुंभ का आगाज अगले साल 2025 में हो जाएगा। 13 जनवरी से हिदू धर्म के इस मेगा आयोजन के लिए करीब 40 करोड़ श्रद्धालु आएंगे। साधु-संत, अखाड़ा परिषदों ने इसकी तैयारियां शुरू कर दी हैं। प्रयास किया जा रहा है कि यह आयोजन हिंदू धर्म की ख्याति को पूरी दुनिया में पहुंचाया। यही कारण है कि अखाड़ा परिषद ने ऐलान कर दिया है कि प्रयागराज महाकुंभ में गुलामी के प्रतीक शाही और पेशवाई शब्द का प्रयोग नहीं किया जाएगा। इनके स्थान पर हिंदू और सनातनी नामों में चर्चा शुरू हो गई। यह महाकुंभ के इतिहास में पहली बार होगा, जब इन शब्दों को बदला जाएगा। दरअसल शाही शब्द उर्दू है और मुगल शासकों की जीवनशैली से जुड़ा है। वहीं ‘पेशवाई’ फारसी भी फारसी शब्द है। अखाड़ा परिषद का कहना है कि ये दोनों शब्द गुलामी की मानसिकता के परिचायक हैं। शाही और पेशवाई जैसे शब्द सनातन संस्कृति और धर्म से मेल नहीं खाते। इसलिए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने इनकी जगह दूसरे शब्द प्रयोग में लाने का निर्णय लिया है।

    मप्र के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने दिया राजसी नाम

    अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्रपुरी ने हरिद्वार में पत्रकारों से कहा कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने महाकाल की शाही सवारी शब्द पर आपत्ति करते हुए उसे राजसी सवारी का नाम दिया था। इस वजह से अखाड़ा परिषद का ध्यान भी इस ओर गया। अब अखाड़ा परिषद में राजसी स्नान शब्द को लेकर सहमति बनती दिख रही है। हालांकि इस पर अंतिम निर्णय इसी माह प्रयागराज में होने वाली अखाड़ा परिषद की बैठक में लिया जाएगा। सभी अखाड़ों की सहमति से नए शब्दों का चयन किया जाएगा। इसके बाद सभी चारों कुंभ मेला स्थल प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन व नासिक में कुंभ मेला अधिष्ठान को अधिसूचना जारी करेगी, ताकि कुंभ मेला से जुड़े शासकीय विभागों में भी उसी अनुरूप कार्य हो।

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