बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में लोकआस्था का महापर्व चैती छठ आज से शुरू हो रहा है। भगवान सूर्य और छठी मैय्या को समर्पित यह व्रत 4 दिनों तक मनाया जाता है। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से सप्तमी तिथि तक पूरे श्रद्धा भाव के साथ मनाया जाता है। इस दौरान छठ गीत गाए जाते हैं और व्रत रखा जाता है। चैत्र शुक्ल चतुर्थी तिथि के दिन नहाय खाय से इसकी शुरुआत होती है। 2 अप्रैल को चैत्र शुक्ल पंचमी तिथि के दिन खरना होगा। 3 अप्रैल को चैत्र शुक्ल षष्ठी तिथि को चैती छठ का पर्व मनाया जाएगा। वहीं 4 अप्रैल को चैत्र शुक्ल सप्तमी तिथि को छठ का परना किया जाएगा।
चैती छठ नहाय खाय से होगी शुरुआता
चैती छठ पूजन के पहले दिन चैत्र शुक्ल चतुर्थी यानि आज नहाय खाय होगा। इस दिन पवित्र नदी, तालाब में स्नान करने का महत्व है। पूरी सफाई और शुद्धता के साथ बनाया गया भोजन ग्रहण किया जाता है। कद्दू की सब्जी, चावल और चने की दाल आदि शामिल होती है। नहाय खाय के जरिए व्रती का तन और मन शुद्ध होता है। इसके बाद वह तीन दिन का कठिन व्रत रखता है। चैती छठ पूजन के दूसरे दिन चैत्र शुक्ल पंचमी तिथि यानी 2 अप्रैल को खरना होगा जिसमें निर्जला व्रत रखा जाता है। शाम को सूर्य भगवान की पूजा की जाती है और इसके बाद शुद्धता के साथ बनाई गई गुड़ की खीर, फल आदि का सेवन किया जाता है। खरना का प्रसाद लेने के बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू होता है। चैती छठ पूजन का तीसरा दिन यानी चैत्र शुक्ल षष्ठी तिथि अहम दिन होता है। इस दिन व्रती शाम के समय पवित्र नदी या तालाब के किनारे सूर्य देव को अघ्र्य देते हैं। चैती छठ पूजन के चौथे और अंतिम दिन परना किया जाएगा और उगते सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। अघ्र्य और प्रसाद वितरण के साथ ही व्रत का पारण किया जाता है।
यह है चैती छठ का महत्व
चैती छठ मनोकामना पूरी होने का पर्व है ओर दीवाली के बाद होने वाली छठ की तरह यह छठ सभी लोगों नहीं करते हैं। इसलिए इसमें ज्यादा भीड़ नहीं होती है। धारणा यह है कि जिनकी मनोकामना पूरी हो जाती है, वे चैती छठ व्रत करते हैं। अलग-अलग मान्यताओं के मुताबिक इसे एक, तीन या पांच साल तक किया जाता है। कई लोग मनोकामना पूरी होने तक इसे करते हैं।