तालिबान यानि कट्टरपंथियों का वो समूह जो भारत में जेहाद करने और खूनखराबा के लिए तैयार रहता था। अफगान लड़ाके अक्सर भारत के खिलाफ जेहाद की हुंकार भरते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं है। पाकिस्तान के साथ तालिबान की सरकार के साथ युद्ध जैसे हालात हैं। तालिबानी नेता आए दिन पाकिस्तान को आंखें दिखाते हैं तो पाकिस्तान भी एयर स्ट्राइक कर तालिबान को बर्बाद करने पर तुला है। भारत की सधी हुई रणनीति का असर है कि अफगानिस्तान की भारत से नजदीकियां बढ़ रही हैं, व्यापार दिन-दूना रात चोगुना बढ़ रहा है। अब पाकिस्तान के विरुद्ध अफगानिस्तान के अलावा ईरान भी भारत के साथ खड़ा है। इसका एक उदाहरण चाबहार समझौता है। तालिबान ने चाबहार समझौते की प्रशंसा कर पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिया है। पाकिस्तान ने च्वादर पोर्ट को चीन को दे दिया है। इसके जवाब में भारत भी चाबहार बंदरगाह विकसित कर रहा है। अमेरिका के कड़े रुख के बावजूद भारत चाबहार परियोजना पर दृढ़ता से आगे बढ़ रहा है।
कराची पोर्ट से निर्भरता कम हो जाएगी
तालिबान सरकार के प्रवक्ता जबीउल्ला मुजाहिद ने चाबहार समझौते की प्रशंसा की है। उन्होंने कहा कि चाबहार का विस्तार किया जाना चाहिए। यहां से जितनी ज्यादा आर्थिक गतिविधियां बढ़ेंगी, उतनी ज्यादा क्षेत्र में आर्थिक स्थिरता आएगा। चाबहार पोर्ट के माध्यम से अफगानिस्तान को बेहद फायदा होगा। तालिबान ने कहा कि हम इसका समर्थन करते हैं, क्योंकि चाबहार पोर्ट एक बदलाव करने वाला प्रोजेक्ट है। उन्होंने पाकिस्तान पर कहा कि इससे हमारी कराची पोर्ट से निर्भरता कम हो जाएगी और चाबहार के माध्यम से अफगानिस्तान में व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। इस बयान को पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा संदेश माना जा रहा है। तालिबान के उद्योग मंत्रालय का भी मानना है कि अफगानिस्तान और भारत के बीच व्यापार 77.30 लाख डॉलर तक पहुंच गया है। इसमें 58 करोड़ डॉलर का निर्यात है और 20 करोड़ डालर का आयात है।
पाकिस्तान की वसूली पर लगेगी रोक
उद्योग मंत्रालय ने साफ कर दिया है चाबहार पोर्ट के आसपास जमीन ली जाएगी और इसे स्पेशल जोन बनाया जाएगा, ताकि अफगानिस्तान के व्यापारियों को इसका ज्यादा से ज्यादा लाभ हो। चाबहार बंदरगाह अफगानिस्तान के विकास में मील का पत्थर साबित होगा। अभी तक पाकिस्तान कराची पोर्ट के माध्यम से पाकिस्तान से ज्यादा पैसे वसूल रहा था। इसके साथ ही गाहे-बगाहे अफगानिस्तान का रास्ता रोकने की धमकी भी देता रहा है। अब पाकिस्तान को करोड़ों डॉलर का नुकसान होगा।