राजस्थान के बाड़मेर जिले के छोटे से गाँव के जोधाराम की कहानी संघर्ष, दृढ़ संकल्प और असाधारण सफलता का प्रतीक है। अभावों में पले-बढ़े जोधाराम ने न केवल अपने परिवार की गरीबी को मात दी, बल्कि उन सभी लोगों के लिए एक मिसाल कायम की, जो मुश्किल परिस्थितियों में हार मान लेते हैं। जोधाराम का परिवार आर्थिक रूप से बेहद कमजोर था। उनके पिता दिहाड़ी मजदूर थे और घर का खर्च चलाना मुश्किल था। पढ़ाई में मेहनत करने के बावजूद, जब जोधाराम के 10वीं बोर्ड में 70% से कम नंबर आए, तो उनके पिता ने निराश होकर कहा, “पढ़ाई छोड़ दो और मजदूरी करो। इसमें ही तुम्हारा भला है।” यह बात जोधाराम के दिल में उतर गई, लेकिन उसने इसे अपनी हार नहीं, बल्कि एक चुनौती के रूप में लिया।
दोगुनी मेहनत से पढ़ाई करने का फैसला किया
पिता की बात सुनकर जोधाराम ने मजदूरी करने की बजाय दोगुनी मेहनत से पढ़ाई करने का फैसला किया। उन्होंने ठान लिया कि वे डॉक्टर बनकर ही रहेंगे। परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए, उन्होंने एक सरकारी स्कूल में दाखिला लिया और रात-दिन एक करके पढ़ाई की। कोचिंग या महंगे स्टडी मटेरियल का सहारा नहीं ले सके, इसलिए उन्होंने स्वयं अध्ययन और शिक्षकों के मार्गदर्शन पर अधिक भरोसा किया। कई असफलताओं और कठिनाइयों के बावजूद, जोधाराम ने हिम्मत नहीं हारी।
प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज में प्रवेश पा लिया
अपनी कड़ी मेहनत और लगन से उन्होंने NEET (राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा) क्रैक कर ली और एक प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज में प्रवेश पा लिया। आज, जोधाराम एक युवा डॉक्टर हैं, जो अपने गाँव और समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बन चुके हैं। उनकी यह सफलता कहानी उन सभी युवाओं को संदेश देती है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती। उनके परिवार में अब खुशहाली है और जोधाराम का नाम पूरे बाड़मेर में गर्व से लिया जाता है।