अयोध्या में राम मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास का 85 साल की उम्र में निधन हो गया। सत्येंद्र दास ने 32 साल तक अयोध्या में रामलला की सेवा की। वे बाबरी विध्वंस से लेकर राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा तक राम मंदिर आंदोलन के साक्षी रहे। यह उनके लिए सौभाग्य की बात रही कि उनके रहते रामलला का मंदिर बना और प्राण प्रतिष्ठा भी हुई। वे राम के प्रति पूरा जीवन समर्पित रहे।
बावरी विध्वंस की बताई थी आपबीती
सत्येंद्र दास को रामलला की पूजा के लिए नौ महीने पहले ही चयन हुआ था। जब राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बना तो उन्होंने कहा था कि पता नहीं मैं आगे रामलला की सेवा कर पाऊंगा या नहीं। लेकिन आखिरी समय तक वे राम मंदिर के मुख्य पुजारी रहे। आचार्य सत्येंद्र दास ने एक बार बताया था कि जब बाबरी का विध्वंस हुआ तो मैं वहीं मौजूद था। 6 दिसंबर 1992 की उस घटना को याद करते हुए सत्येंद्र दास ने कहा कि सुबह 11 बज रहे थे। मंच तैयार हो चुका था और लाउड स्पीकर से ऐलान किया जा रहा था। वहां मौजूद नेताओं ने कहा कि पुजारी जी आप रामलला को भोग लगा दें और पर्दा बंद कर दें। सत्येंद्र दास जी ने भोग लगाकर रामलला का पर्दा बंद कर दिया। जो कारसेवक वहां आए थे, उनसे कहा गया था कि आप लोग सरयू से जल ले आएं। मौके पर ही एक चबूतरा बनाया गया था। ऐलान हुआ कि सभी लोग चबूतरे पर पानी छोड़ें और धोएं। जो युवा कारसेवक थे, उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया। युवा कारसेवकों ने कहा कि हम यहां पानी से चबूतरा धोने नहीं आए हैं, बल्कि हम लोग यह कारसेवा नहीं करेंगे। इसके बाद नारे लगने लगे। युवा कारसेवक बेहद उत्साहित थे। वे पुलिस व्यवस्था को हटाकर बैरिकेडिंग तोडक़र विवादित ढांचे तक पहुंच गए और तोडऩा शुरू कर दिया। हम रामलला को बचाने में लग गए कि उन्हें कोई नुकसान न हो। हम रामलला को उठाकर अलग चले गए. जहां उन्हें कोई नुकसान नहीं हुआ।