गगनयान मिशन के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा चुने गए चार अंतरिक्ष यात्रियों में से एक विंग कमांडर शुभांशु शुक्ला भारत के लिए एक नया अध्याय लिखने को तैयार हैं। यह मिशन भारत को अंतरिक्ष में मानव भेजने वाले देशों की लीग में शामिल करेगा और शुभांशु शुक्ला जैसे बहादुर पायलट इस ऐतिहासिक उपलब्धि के ध्वजवाहक होंगे। विंग कमांडर शुभांशु शुक्ला भारतीय वायुसेना के एक अनुभवी टेस्ट पायलट हैं। उनका जन्म और पालन-पोषण उत्तर प्रदेश के लखनऊ में हुआ। बचपन से ही उनमें विज्ञान और विमानन के प्रति गहरी रुचि थी, जिसने उन्हें भारतीय वायुसेना में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। अपनी कड़ी मेहनत और लगन से उन्होंने वायुसेना में टेस्ट पायलट बनने का महत्वपूर्ण दर्जा हासिल किया।
शांत रहने और जटिल प्रणालियों को समझने की अद्वितीय क्षमता
टेस्ट पायलट के रूप में उनका अनुभव गगनयान मिशन के लिए अमूल्य है। उन्होंने विभिन्न प्रकार के विमानों का परीक्षण किया है, जिससे उन्हें उच्च दबाव वाली स्थितियों में भी शांत रहने और जटिल प्रणालियों को समझने की अद्वितीय क्षमता प्राप्त हुई है। यह अनुभव अंतरिक्ष यात्रा के दौरान आने वाली चुनौतियों का सामना करने में उनकी मदद करेगा। शुभांशु शुक्ला और उनके साथी अंतरिक्ष यात्रियों को बेंगलुरु में इसरो के ह्यूमन स्पेसफ्लाइट सेंटर में व्यापक प्रशिक्षण दिया गया है। इसमें शारीरिक फिटनेस, सिमुलेटर प्रशिक्षण, और आपातकालीन प्रक्रियाओं की तैयारी शामिल है। उन्होंने रूस में भी विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया है, जो उन्हें शून्य गुरुत्वाकर्षण और अंतरिक्ष के कठोर वातावरण के लिए तैयार करेगा।
राकेश शर्मा थे पहले यात्री
गगनयान मिशन भारत की वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति का प्रतीक है। शुभांशु शुक्ला जैसे समर्पित व्यक्तियों के माध्यम से, भारत अंतरिक्ष अन्वेषण में अपनी क्षमताओं को और बढ़ाएगा। उनकी कहानी न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कड़ी मेहनत, समर्पण और जुनून के साथ कोई भी अपने सपनों को प्राप्त कर सकता है, और देश के लिए गौरव ला सकता है। इससे पहले 1984 में राकेश शर्मा आईआईएस में जाने वाले राकेश शर्मा पहले यात्री थे, जो सोवियत संघ के अंतरिक्ष यान का हिस्सा थे।