भारत के इतिहास में 13 अप्रैल का दिन एक दुखद घटना हुई थी, जब 1919 में जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा के लिए एकत्र हुए हजारों भारतीयों पर अंग्रेज हुक्मरान ने अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं। ब्रिगेडियर-जनरल रेजीनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर के नेतृत्व में ब्रिटिश भारतीय सेना के सैनिकों ने बाग को चारों तरफ से घेर लिया। एकमात्र संकरे निकास द्वार को भी सैनिकों ने बंद कर दिया और बिना किसी चेतावनी के डायर ने अपने सैनिकों को निहत्थे भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। इस भयानक नरसंहार में सैकड़ों निर्दोष पुरुष, महिलाएं और बच्चे मारे गए और हजारों घायल हो गए। हालांकि आधिकारिक ब्रिटिश आंकड़ों के अनुसार, मरने वालों की संख्या 379 थी, जबकि भारतीय अनुमान इससे कहीं अधिक है। इस हत्याकांड के विरोध में पूरा देश एकजुट हुआ तो एक वकील भी थे, जिन्होंने डायर के खिलाफ ब्रिटेन में ही मुकदमा दर्ज कराया। ये थे मलयाली परिवार के वकील चेट्टूर शंकर नायर। अब उन्हीं के संघर्ष पर आधारित अक्षय कुमार की फिल्म केसरी चेप्टर 2 बन रही है, जो 18 अप्रैल को रिलीज होने वाली है।
खौफनाक घटना ने नायर की जिंदगी बदल दी
नायर ने मद्रास हाईकोर्ट में वकालत शुरू की। उनके मन में अपने देश के प्रति सम्मान था। 1884 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें मालाबार जिले की जांच के लिए एक समिति का सदस्य बनाया। 1908 तक वे सरकार के एडवोकेट-जनरल रहे और ुछ समय के लिए न्यायाधीश के रूप में भी काम किया। 1908 में वे मद्रास उच्च न्यायालय में स्थायी न्यायाधीश बन गए। उन्होंने 1915 तक इस पद पर काम किया। जलियावाला बाग की खौफनाक घटना ने नायर की जिंदगी बदल दी। उन्होंने जलियांवाला हत्याकांड के बाद अंग्रेजों को उन्हीं की भाषा में जवाब देना ठीक समझा।
अक्षय की फिल्म केसरी चैप्टर-2 में नायर की कहानी
सर चेट्टूर शंकरन नायर एक वकील, जज और राजनेता थे। 1857 में जन्मे नायर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद उन्होंने वायसराय की परिषद से इस्तीफा दे दिया।
जब नायर को ब्रिटिश सरकार ने दी नाइट उपाधि
1902 में वायसराय लॉर्ड कर्जन ने उन्हें रैले विश्वविद्यालय आयोग का सचिव नियुक्त किया। 1904 में नायर को ब्रिटिश सम्राट द्वारा उन्हें साम्राज्य का साथी बनाया गया और 1912 में उन्हें नाइट की उपाधि दी गई। 1915 में वे शिक्षा विभाग के प्रभारी के रूप में वायसराय की परिषद के सदस्य बने। 1919 में उन्होंने भारतीय संवैधानिक सुधारों पर दो असहमतिपूर्ण टिप्पणियां लिखीं, जिसमें उन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन की कमियों को बताया और सुधारों के सुझाव दिए। उस समय, किसी भारतीय द्वारा ऐसी आलोचना करना बहुत बड़ी बात थी और ब्रिटिश सरकार ने भी उनकी कई सिफारिशों को मान लिया।
जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में दिया इस्तीफा
जलियांवाला बाग हत्याकांड ब्रिटेन के माथे पर एक दाग की तरह है। इस घटना के विरोध में नायर ने वायसराय की परिषद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में भी सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। 1897 में मद्रास में पहला प्रांतीय सम्मेलन हुआ और उन्हें कांग्रेस की अध्यक्षता करने के लिए बुलाया गया। उसी वर्ष भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन अमरावती में हुआ और नायर अध्यक्ष चुने गए।
जनरल ओ डायर के पक्ष में फैसला सुनाया
हालांकि अदालत ने जनरल ओ डायर के पक्ष में फैसला सुनाया, लेकिन इस मुकदमे ने भारत में ब्रिटिश अत्याचारों की ओर वैश्विक ध्यान दिलाया और औपनिवेशिक प्रतिष्ठान के भीतर गहरे मतभेदों को उजागर किया। नायर ने ओ डायर से माफी मांगने के बजाय उसे हर्जाने के तौर पर 500 पाउंड देने का विकल्प चुना। ब्रिटिश कंजर्वेटिव सांसद बॉब ब्लैकमैन ने ब्रिटिश सरकार से 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर में किए गए अत्याचारों को स्वीकार करने और औपचारिक माफ़ी मांगने का आह्वान भी किया था।