यह कहानी है अदम्य साहस, फौलादी इरादों और अटूट लगन की, जहां विपरीत परिस्थितियों में भी सपनों को हकीकत में बदला जा सकता है। सीआरपीएफ कमांडेंट राजू वाघ ने यह साबित कर दिखाया है कि अगर हौसले बुलंद हों, तो कोई भी चुनौती बड़ी नहीं होती। देश के सबसे चुनौतीपूर्ण इलाकों, नक्सलियों से घिरे घने जंगलों में रहते हुए भी उन्होंने देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा, यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा क्रैक कर एक अद्भुत मिसाल कायम की है। राजू वाघ सीआरपीएफ में कमांडेंट के पद पर तैनात थे। अपनी ड्यूटी के दौरान अक्सर छत्तीसगढ़ और झारखंड के दुर्गम, नक्सल प्रभावित इलाकों में रहते थे। जहां एक तरफ देश सेवा का जुनून था, वहीं दूसरी ओर अपने सिविल सेवा में जाने के सपने को भी वे पाले हुए थे। उनका पढऩे का समय अक्सर उनकी ड्यूटी के घंटों के बाद होता था, जब बाकी जवान आराम कर रहे होते थे। रात के सन्नाटे में, बंकरों और अस्थाई शिविरों में, कभी टॉर्च की रोशनी में तो कभी छोटे लैंप के सहारे उन्होंने अपनी किताबों से दोस्ती की।
थकावट और तनाव के बाद नींद को हराना चुनौती
वाघ बताते हैं कि कई बार उन्हें दिनभर की थकावट और तनाव के बाद नींद को हराना पड़ता था। नक्सली हमलों का खतरा हमेशा बना रहता था, कभी भी गोलीबारी या ग्रेनेड हमले की आशंका रहती थी। “कई बार तो ऐसा होता था कि मैं पढ़ रहा होता था और तभी अचानक किसी ऑपरेशन के लिए निकलना पड़ जाता था। पढ़ाई बीच में ही छूट जाती थी। लेकिन मैं हार नहीं मानता था। जब भी मौका मिलता, फिर से किताबों में डूब जाता,” राजू वाघ ने बताया।
इंटरनेट कनेक्टिविटी की समस्या और स्टडी मटेरियल की कमी
राजू की दिनचर्या बेहद कठिन थी। सुबह जल्दी उठकर ड्यूटी, फिर पेट्रोलिंग, सर्च ऑपरेशन और कैंप की सुरक्षा का जिम्मा। इसके बाद रात को जब सब सो जाते थे, तब उनकी पढ़ाई शुरू होती थी। उनके सहकर्मी भी उनकी इस लगन को देखकर हैरान रह जाते थे। उन्होंने बताया कि इंटरनेट कनेक्टिविटी की समस्या और स्टडी मटेरियल की कमी भी एक बड़ी चुनौती थी। जो किताबें उपलब्ध होती थीं, उन्हीं से काम चलाना पड़ता था। अपडेटेड नोट्स मिलना मुश्किल था, लेकिन मैंने मौजूदा संसाधनों का भरपूर उपयोग किया।
समस्याओं को पीछे छोडक़र संघर्ष किया
राजू वाघ की यह सफलता उन सभी युवाओं के लिए एक प्रेरणा है जो मानते हैं कि संसाधनों की कमी या कठिन परिस्थितियाँ सफलता के आड़े आती हैं। उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और अथक परिश्रम से यह साबित कर दिया कि अगर लक्ष्य स्पष्ट हो और मेहनत सच्ची हो, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती। उनकी यह उपलब्धि न केवल उनके परिवार और बल के लिए गर्व का विषय है, बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणादायक गाथा है। उनकी कहानी बताती है कि जुनून और समर्पण के साथ, सबसे दुर्गम रास्तों पर भी सफलता की मंजिल तक पहुंचा जा सकता है।