बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल के बाद अब फरवरी 2026 में आम चुनाव होने जा रहे हैं। अगस्त 2024 में छात्र-नेतृत्व वाले विद्रोह के बाद पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद यह देश का पहला चुनाव होगा। यह चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें हसीना की पार्टी अवामी लीग को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं मिली है, जिससे बांग्लादेश के राजनीतिक भविष्य और पड़ोसी देश भारत के साथ उसके संबंधों पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं।
अवामी लीग पर प्रतिबंध
- विद्रोह के बाद: शेख हसीना को सत्ता से बेदखल किए जाने के बाद गठित अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार ने स्पष्ट कर दिया है कि अवामी लीग को इन चुनावों में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
- परिणाम: यह प्रतिबंध हसीना की पार्टी के लिए एक बड़ा झटका है, जिसने तीन दशकों तक बांग्लादेश की राजनीति पर प्रमुख रूप से राज किया है।
- अन्य दल: चुनाव मुख्य रूप से पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा ज़िया की पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) और नवगठित नेशनल सिटिजन्स पार्टी (NCP) के बीच लड़ा जाएगा।
भारत से रिश्तों पर ख़ास नज़र
यह चुनाव भारत के लिए भी भू-राजनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि नई सरकार के गठन से दोनों देशों के संबंधों की दिशा तय होगी।
- चीन का बढ़ता प्रभाव: विश्लेषकों का मानना है कि शेख हसीना के हटने के बाद भारत और बांग्लादेश के संबंधों में तनाव आया है। जैसे-जैसे बांग्लादेश भारत से दूरी बना रहा है, चीन चुपचाप बांग्लादेश के राजनीतिक और आर्थिक ढांचे में अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है।
- भारत का रुख: विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्पष्ट किया है कि भारत बांग्लादेश में लोकतंत्र की मजबूती पर जोर देता है और एक निष्पक्ष तथा विश्वसनीय चुनाव को प्राथमिकता देना चाहिए।
- हसीना को शरण: भारत ने मानवीय आधार पर पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को शरण दी है, जिन्हें ढाका की एक विशेष अदालत ने अनुपस्थिति में मौत की सज़ा सुनाई है।
- इस चुनाव के दौरान, लोकतांत्रिक सुधार चार्टर पर जनमत संग्रह और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की मांग भी एक अहम मुद्दा बनी हुई है।


