भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने 25 जून, 2025 को Axiom-4 मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के लिए उड़ान भरी और 26 जून को उनका यान ISS से सफलतापूर्वक डॉक हो गया। इस 14-दिवसीय मिशन के दौरान शुभांशु शुक्ला कई महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे, जिनमें भारत द्वारा डिज़ाइन किए गए 7 प्रयोग भी शामिल हैं। इन प्रयोगों का उद्देश्य मानव स्वास्थ्य और अंतरिक्ष में जीवन की स्थिरता को बेहतर ढंग से समझना है, जो भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
प्रमुख प्रयोग और उनकी अहमियत:
- बीज परीक्षण: शुभांशु ISS पर विभिन्न प्रकार के बीजों पर माइक्रोग्रैविटी के प्रभावों का अध्ययन करेंगे। अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण की कमी पौधों के विकास और आनुवंशिकी को कैसे प्रभावित करती है, यह समझना भविष्य के दीर्घकालिक अंतरिक्ष मिशनों, जैसे मंगल पर मानव बस्ती स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण है, जहाँ भोजन का उत्पादन एक चुनौती होगी।
- मांसपेशियों की कमजोरी (Muscle Weakness): अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने से अंतरिक्ष यात्रियों में मांसपेशियों की कमजोरी (एट्रोफी) और हड्डियों के घनत्व में कमी आती है। शुभांशु इस समस्या के पीछे के तंत्र को समझने और इसके संभावित समाधानों पर शोध करेंगे। यह अनुसंधान न केवल अंतरिक्ष यात्रियों के लिए, बल्कि पृथ्वी पर मांसपेशियों की कमजोरी और संबंधित बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए भी फायदेमंद हो सकता है।
- मधुमेह (Diabetes): माइक्रोग्रैविटी का मानव शरीर की चयापचय प्रक्रियाओं (metabolic processes) पर क्या प्रभाव पड़ता है, इसका अध्ययन भी शुभांशु के प्रयोगों का हिस्सा है। मधुमेह जैसी बीमारियाँ, जो पृथ्वी पर लाखों लोगों को प्रभावित करती हैं, अंतरिक्ष में कैसे व्यवहार करती हैं, इसकी जांच की जाएगी। यह शोध नई दवाओं और उपचारों के विकास में मदद कर सकता है।
- अंतरिक्ष विकिरण के प्रभाव: ISS पर रहते हुए, शुभांशु अंतरिक्ष विकिरण के मानव शरीर और जैविक नमूनों पर पड़ने वाले प्रभावों का भी अध्ययन करेंगे। यह जानकारी अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और गहरे अंतरिक्ष मिशनों के लिए ढाल तकनीकों को विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण है।