नक्सली संगठन सीपीआई (माओवादी) के महासचिव एन. केशवा राव उर्फ बसवराजू के छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में मारे जाने के बाद इस प्रतिबंधित संगठन के लिए एक बड़ा नेतृत्व संकट खड़ा हो गया है। बसवराजू लंबे समय से इस संगठन के शीर्ष पर था और उसकी मौत से माओवादी आंदोलन चौराहे पर आ खड़ा हुआ है। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि उनकी जगह कौन लेगा। खासकर ऐसे समय में जब संगठन की सेंट्रल कमेटी की ताकत काफी कम हो गई है। बसवराजू की जगह लेने के लिए दो प्रमुख नाम सामने आ रहे हैं, जिन पर सुरक्षा एजेंसियों की भी पैनी नजर है।
सेंट्रल कमेटी की घटती ताकत
21 सितंबर 2004 को माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर और पीपुल्स वॉर के विलय से सीपीआई (माओवादी) का गठन हुआ था। तब इसकी सेंट्रल कमेटी में लगभग 42 सदस्य थे। यह कमेटी संगठन की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था है। हालांकि पिछले दो दशकों में सुरक्षा बलों की लगातार कार्रवाई, मुठभेड़ों में मारे जाने, गिरफ्तारियों और आत्मसमर्पण के कारण, सेंट्रल कमेटी की सदस्य संख्या घटकर अब सिर्फ 18 रह गई है। यह माओवादी आंदोलन के इतिहास में उसकी सबसे कमजोर स्थिति है।
महासचिव पद के दावेदार
- थिप्पिरी तिरुपति उर्फ देवजी : यह माओवादी पार्टी की सशस्त्र शाखा, सेंट्रल मिलिट्री कमीशन का प्रमुख है। 62 वर्षीय देवजी तेलंगाना के जगतियाल से आता है और दलित (मादिगा) समुदाय से है। कुछ खुफिया अधिकारियों का मानना है कि उसका नेतृत्व महत्वपूर्ण हो सकता है क्योंकि वह हाशिए के पृष्ठभूमि से आता है।
- मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ सोनू : यह 70 वर्षीय नेता फिलहाल पार्टी के वैचारिक प्रमुख माना जाता है। तेलंगाना के पेद्दापल्ली क्षेत्र से आने वाला वेणुगोपाल राव एक ब्राह्मण है और एक अनुभवी राजनीतिक रणनीतिकार है। कुछ अधिकारियों का मानना है कि पार्टी एक ऐसे व्यक्ति को चुन सकती है जिसकी किशनजी (एक पूर्व प्रमुख माओवादी नेता) जैसी विरासत हो। सुरक्षा एजेंसियां यह जानने की कोशिश कर रही हैं कि पार्टी इन दोनों में से किसे चुनेगी। यह देखना बाकी है कि पार्टी संकट की इस घड़ी में अपने सशस्त्र कमांड पर भरोसा करेगी या अपनी वैचारिक नींव पर।
नेतृत्व संकट और आंदोलन का भविष्य
बसवराजू की मौत से माओवादी संगठन में नेतृत्व का खतरा मंडराने लगा है। सेंट्रल कमेटी में सदस्यों की कमी और शीर्ष नेतृत्व की अनुपस्थिति के कारण संगठन को अब दिशाहीनता और एक एकीकृत आवाज की कमी का सामना करना पड़ रहा है। यह स्थिति माओवादी आंदोलन को कमजोर कर सकती है और भारत में नक्सलवाद के खिलाफ चल रहे अभियानों के लिए एक बड़ी सफलता मानी जा रही है।