बांग्लादेश भले ही आज उठापटक के दौर से गुजर रहा हो, लेकिन इससे पहले भी वहां अनिश्चितता का दौर था। बात 7 मार्च, 1971 की है, जबकि को बांग्लादेश के जनक कहे जाने वाले शेख मुजीबुर रहमान ने ढाका के रेस कोर्स मैदान में एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए बांग्लादेश की आजादी का ऐलान किया था। उन्होंने अपने ऐतिहासिक भाषण में कहा था कि इस बार की लड़ाई हमारी मुक्ति की लड़ाई है और इस बार की लड़ाई हमारी आजादी की लड़ाई है। शेख मुजीबुर रहमान का यह भाषण बांग्लादेश के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ था। इस भाषण ने बांग्लादेश के लोगों को आजादी के लिए एकजुट किया। बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी ने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध शुरू कर दिया था। लेकिन पाकिस्तान इससे आगबबूबा हो गया। शेख मुजीबुर रहमान के भाषण के बाद बांग्लादेश में पाकिस्तानी सेना ने नरसंहार करना शुरू कर दिया था। पाकिस्तानी सेना ने लाखों लोगों को मार डाला और हजारों महिलाओं के साथ बलात्कार किया।
8 माह चला था संघर्ष
बांग्लादेश में चल रही इस हिंसा से भारत अछूता नहीं रहा। बांग्लादेश शरणार्थी बड़ी संख्या में भारत पहुंच गए। इससे भारत की शांति और सुरक्षा व्यवस्था भी प्रभावित होने लगी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की लेकिन किसी ने इस समस्या का समाधान नहीं किया। ऐसे में भारत ने बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी का समर्थन किया और पाकिस्तानी सेना के खिलाफ युद्ध में भाग लिया। आखिरकार 16 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया और बांग्लादेश एक स्वतंत्र देश बन गया। शेख मुजीबुर रहमान को बांग्लादेश का जनक माना जाता है। उन्होंने बांग्लादेश को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पाकिस्तान हुआ था दोफाड़
इस युद्ध में करारी हार और 90 हजार सैनिकों के भारत के सामने समर्पण से पाकिस्तान को जिल्लत झेलनी पड़ी। इसके साथ ही पाकिस्तान दो टुकड़े में बंट गया। इस हार की पीड़ा को पाकिस्तान अब भी नहीं भूला है।


