एप्पल की मालकिन लॉरेन पॉवेल जॉब्स पौष पूर्णिमा पर प्रथम डुबकी के साथ संगम की रेती पर कल्पवास करेंगी। उनके ठहरने की व्यवस्था निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद के शिविर में की गई है। वह 29 जनवरी तक उनके शिविर में रहकर सनातन धर्म को समझेंगी।
वह कैलाशानंद के 19 जनवरी से शुरू हो रही कथा की पहली यजमान भी होंगी। लॉरेन पॉवेल एप्पल के सह संस्थापक स्टीव जॉब्स के निधन के बाद विरासत में मिली 25 बिलियन डॉलर की संपत्ति की मालकिन हैं। उनके अलावा इंफोसिस फाउंडेशन के संस्थापक नारायण मूर्ति की अरबपति पत्नी विख्यात समाजसेविका सुधामूर्ति भी महाकुंभ में डुबकी लगाएंगी। सुधामूर्ति के लिए उल्टा किला के पास कॉटेज तैयार किया जा रहा है। वह भी महाकुंभ की संस्कृति को समझेंगी। इसके अलावा पूरे महाकुंभ में 12 लाख लोग कल्पवास करेंगे। आई जानते हैं आखिर यह कल्पवास होता क्या है और इसका महत्व क्या है।
यह कल्पवास का महत्व
कल्पवास माघ माह में किए जाने वाला व्रत होता है, जिसका उद्देश्य तन और मन के विकारों को निकालकर मोक्ष की राह की ओर अग्रसर होना है। एक महीने का यह व्रत पूरे वर्ष शरीर और मन को उर्जा सम्पन्न करता है। प्रयागराज के संगम तट पर एक माह रहकर लोग कल्पवास करते हैं। यह परम्परा सदियों से चली आ रही है।
आखिर क्या है कल्पवास
कल्पवास वस्तुत: यह एक ऐसा व्रत है जो प्रयाग आदि तीर्थों के तट पर किया जाता है। यह बहुत ही कठिन व्रत है, इस व्रत में सूर्योदय से पूर्व स्नान, मात्र एक बार भोजन, पुन: मध्यान्ह तथा सायंकाल तीन बार स्नान का विधान है। कल्पवास के व्रत को एक माह में पूर्ण करते हैं। मान्यताओं के अनुसार जो कल्पवासी लगातार बारह वर्ष तक अनवरत कल्पवास करते हैं, वह मोक्ष के भागी होते हैं। एक माह में कल्पवास की पूर्ति कर विशेष रूप से उसका उध्यापन किया जाता है। इस बार महाकुम्भ में कुछ लोग पौष पूर्णिमा से और कुछ लोग मकर संक्रान्ति से कल्पवास प्रारम्भ करेंगे।