डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका लगातार ऐसे फैसले ले रहा है जो भारत के लिए चुनौती बन रहे हैं। भले ही ट्रंप पीएम मोदी को अपना “महान दोस्त” कहते हों, लेकिन उनके हाल के फैसलों ने भारत को कई मोर्चों पर नुकसान पहुंचाया है। टैरिफ, चाबहार पोर्ट, और अब H1-B वीजा पर नए नियमों ने दोनों देशों के रिश्तों में तनाव पैदा कर दिया है।
H1-B वीजा पर कड़े नियम
ट्रंप प्रशासन ने H1-B वीजा प्रोग्राम में बड़ा बदलाव किया है, जिसका सीधा असर भारतीय टेक प्रोफेशनल्स पर पड़ेगा। नए नियम के तहत, हर आवेदन के लिए सालाना $100,000 का शुल्क देना होगा। इस कदम का मकसद अमेरिकी नागरिकों को नौकरी देना बताया गया है।
- कंपनियों पर असर: अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लूटनिक के मुताबिक, इस भारी शुल्क के कारण कंपनियां सस्ते विदेशी कर्मचारियों को रखने से बचेंगी। इससे वे अमेरिकियों को प्रशिक्षित करने और नौकरी देने को प्राथमिकता देंगी।
- अवधि में कटौती: नए नियम के अनुसार, H1-B वीजा की अधिकतम वैधता छह साल तक सीमित कर दी गई है, चाहे वह नया आवेदन हो या रिन्यूअल। ट्रंप प्रशासन का कहना है कि इस वीजा का दुरुपयोग हो रहा था, जिससे अमेरिकी कामगारों को नुकसान हो रहा था।
चाबहार पोर्ट पर प्रतिबंध
ट्रंप प्रशासन ने ईरान के चाबहार बंदरगाह पर प्रतिबंध लगा दिए हैं, जिससे भारत की इस रणनीतिक परियोजना पर असर पड़ेगा। भारत ने हाल ही में ईरान के साथ इस पोर्ट के संचालन के लिए 10 साल का समझौता किया था।
- रणनीतिक महत्व: भारत के लिए यह पोर्ट बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच बनाने का रास्ता देता है।
- पुरानी छूट खत्म: अमेरिका ने 2018 में चाबहार परियोजना को प्रतिबंधों से छूट दी थी, लेकिन अब यह छूट समाप्त हो गई है। इसका मतलब है कि भारत अब इस पोर्ट का उपयोग अफगानिस्तान को मानवीय सहायता भेजने या व्यापार के लिए नहीं कर पाएगा।
ट्रंप का अप्रत्याशित व्यवहार
विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप का यह व्यवहार अप्रत्याशित है। वे एक तरफ भारत के साथ दोस्ती की बात करते हैं, वहीं दूसरी तरफ ऐसे फैसले लेते हैं जो भारत के हितों के खिलाफ होते हैं। यह दिखाता है कि अमेरिका की विदेश नीति में “अमेरिका फर्स्ट” की सोच सबसे ऊपर है। भारत को अब अपनी नीतियों पर फिर से विचार करना होगा और अमेरिकी प्रतिबंधों से निपटने के लिए खुद का रास्ता खोजना होगा।
यह घटनाक्रम दर्शाता है कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में केवल बयानबाजी काफी नहीं होती, बल्कि ठोस नीतियां और समझौते ही मायने रखते हैं।