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    जिस कंपनी ने ली स्पॉन्सरशिप, वह डूबी..! 2002 के बाद से चल रहा सिलसिला

    भारतीय क्रिकेट टीम की जर्सी पर दिखने वाले प्रायोजकों का ‘दुर्भाग्यशाली’ होना एक चर्चित विषय रहा है। यह धारणा है कि जो भी कंपनी टीम इंडिया को स्पॉन्सर करती है, उसे वित्तीय संकट का सामना करना पड़ता है। हाल ही में ड्रीम11 के साथ खत्म हुए अनुबंध ने इस बहस को फिर से हवा दे दी है। आइए, इस दावे की हकीकत जानते हैं।

    स्पॉन्सरशिप और कंपनियों का हाल

    पिछले दो दशकों में कई बड़ी कंपनियों ने टीम इंडिया को स्पॉन्सर किया है, और उनमें से कुछ को वास्तव में चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

    • सहारा इंडिया परिवार: साल 2001 से 2013 तक टीम इंडिया की जर्सी पर सबसे लंबे समय तक सहारा का नाम रहा। हालाँकि, बाद में कंपनी कानूनी और वित्तीय विवादों में घिर गई, और उसके प्रमुख सुब्रत रॉय को जेल जाना पड़ा। कंपनी के खिलाफ निवेशकों के पैसे न लौटाने के कई मामले सामने आए।
    • बायजू (Byju’s): 2019 से 2023 तक टीम इंडिया की मुख्य प्रायोजक रही बायजू ने भी अपनी स्पॉन्सरशिप समय से पहले खत्म कर दी। एक समय भारत की सबसे बड़ी एडटेक कंपनी मानी जाने वाली बायजू को हाल के वर्षों में भारी वित्तीय घाटे, छंटनी और गवर्नेंस से जुड़े मुद्दों का सामना करना पड़ा है।

    यह सच है कि सहारा और बायजू जैसी कंपनियों को स्पॉन्सरशिप के बाद गंभीर संकट का सामना करना पड़ा, लेकिन सभी कंपनियों के साथ ऐसा नहीं हुआ। जैसे कि, स्टार इंडिया (2014-2017) और ओप्पो इंडिया (2017-2019) जैसी कंपनियों ने अपने अनुबंध सामान्य तरीके से पूरे किए और उनके कारोबार पर कोई बड़ा नकारात्मक प्रभाव देखने को नहीं मिला।

    ड्रीम11 के बाहर होने की असली वजह

    ड्रीम11 ने हाल ही में भारतीय क्रिकेट टीम के साथ अपना अनुबंध एक साल पहले ही खत्म कर दिया, लेकिन इसका कारण कोई वित्तीय संकट नहीं है। रिपोर्ट्स के अनुसार, यह फैसला ‘ऑनलाइन गेमिंग संवर्धन और विनियमन विधेयक, 2025’ के कारण लिया गया है। यह नया कानून पैसे लगाकर खेले जाने वाले ऑनलाइन खेलों पर प्रतिबंध लगाता है, जो ड्रीम11 का मुख्य व्यवसाय है। कंपनी ने बीसीसीआई को सूचित किया है कि इस कानून के चलते वे स्पॉन्सरशिप जारी नहीं रख सकते। बीसीसीआई और ड्रीम11 के बीच हुए समझौते में एक शर्त थी कि अगर कोई सरकारी कानून कंपनी के व्यवसाय को प्रभावित करता है, तो वे बिना किसी जुर्माने के अनुबंध तोड़ सकते हैं।

    भारतीय क्रिकेट टीम की स्पॉन्सरशिप का ‘दुर्भाग्य’ से कोई लेना-देना नहीं है। कंपनियों को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, उनका कारण उनके अपने व्यावसायिक निर्णय या सरकारी नीतियां रही हैं।

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