अमेरिका की अर्थव्यवस्था एक बड़े संकट से जूझ रही है। इस साल 2025 की पहली छमाही में, यानी जून के अंत तक, 371 बड़ी अमेरिकी कंपनियां दिवालिया हो चुकी हैं। यह पिछले 15 सालों में किसी भी छमाही में दिवालिया होने वाली कंपनियों की सबसे बड़ी संख्या है, जो साल 2010 के रिकॉर्ड (468 कंपनियां) के करीब पहुंच रही है। यह आंकड़ा अमेरिकी अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य को लेकर गंभीर सवाल खड़े करता है और “महान अमेरिका” (Make America Great Again) के नारे पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है।
यह स्थिति कई कारणों से उपजी है। लगातार बढ़ती ब्याज दरें कंपनियों के लिए कर्ज लेना और उसे चुकाना मुश्किल बना रही हैं। कई कंपनियों का कर्ज अब परिपक्व हो रहा है, और ऊंची ब्याज दरों के कारण वे इसे फिर से वित्तपोषित (refinance) करने में असमर्थ हैं। इसके अलावा, महंगाई का दबाव और मंदी की आशंका भी कंपनियों की वित्तीय स्थिति को बदतर बना रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि टैरिफ वॉर जैसी नीतियां भी अमेरिकी कंपनियों के लिए मुश्किलें पैदा कर रही हैं, जिससे उनकी परिचालन लागत बढ़ रही है और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में वे पिछड़ रही हैं। औद्योगिक क्षेत्र (58 कंपनियां), कंज्यूमर डिसक्रिशनरी (50 कंपनियां) और हेल्थकेयर (27 कंपनियां) सेक्टर की कंपनियों पर इस दिवालियापन का सबसे ज्यादा असर पड़ा है।
यह बढ़ती दिवालियापन दर न केवल अमेरिकी कंपनियों के लिए बल्कि पूरे अमेरिकी श्रम बाजार और अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय है। कंपनियों के बंद होने से नौकरियों का नुकसान होता है, उपभोक्ता खर्च में कमी आती है, और आर्थिक विकास पर नकारात्मक असर पड़ता है।
जब अमेरिका का कर्ज $37 ट्रिलियन तक पहुंच चुका है और लगातार बढ़ रहा है, तो ऐसी स्थिति में इतनी बड़ी संख्या में कंपनियों का दिवालिया होना अर्थव्यवस्था को और कमजोर कर सकता है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या अमेरिका मौजूदा आर्थिक चुनौतियों से उबरकर एक बार फिर ‘महान’ बन पाएगा, या फिर यह संकट उसकी आर्थिक स्थिरता के लिए एक लंबी अवधि की चुनौती बन जाएगा?