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    पाक के मिसाइल कार्यक्रम पर FATF की चेतावनी, भारत कर सकता है ये मांग, फंसे शहबाज?

    फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) ने पाकिस्तान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम को लेकर गंभीर चेतावनी जारी की है, जिससे इस्लामाबाद पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ गया है। FATF की नवीनतम रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करते हुए दोहरे उपयोग वाले (Dual-use) सामानों का इस्तेमाल अपने मिसाइल विकास कार्यक्रम में कर रहा है। इस खुलासे के बाद भारत पाकिस्तान पर और कड़े प्रतिबंध लगाने की मांग कर सकता है, जिससे प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

    FATF की रिपोर्ट में 2020 के एक मामले का हवाला दिया गया है, जहां कराची बंदरगाह की ओर जा रहे मिसाइल से संबंधित उपकरणों की एक खेप को रोका था। इस खेप में “ऑटोक्लेव” जैसे उपकरण शामिल थे, जिनका उपयोग उच्च ऊर्जा सामग्री और मिसाइल मोटर घटकों के निर्माण में होता है। शिपिंग दस्तावेजों में इन्हें गलत तरीके से घोषित किया गया था, और इनका सीधा संबंध पाकिस्तान के राष्ट्रीय विकास परिसर (NDC) से पाया गया, जो लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों के विकास के लिए जाना जाता है।

    FATF ने चेतावनी दी है कि ऐसे दोहरे उपयोग वाले सामानों का गलत घोषणापत्रों के साथ निर्यात, अंतर्राष्ट्रीय अप्रसार (non-proliferation) मानदंडों का उल्लंघन है। यह पाकिस्तान की कमजोर निर्यात नियंत्रणों और अंतरराष्ट्रीय नियमों से बचने के लगातार प्रयासों को उजागर करता है।

    भारत पाकिस्तान को एक बार फिर FATF की ग्रे लिस्ट में धकेलने के लिए कर सकता है। सूत्रों के अनुसार, भारत इस संबंध में विस्तृत डोजियर तैयार कर रहा है, जिसे अगस्त में होने वाली एशिया पैसिफिक ग्रुप (APG) की बैठक और अक्टूबर में FATF के पूर्ण सत्र में पेश किया जाएगा। यदि पाकिस्तान फिर से ग्रे लिस्ट में शामिल होता है, तो उसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक (ADB) जैसे संगठनों से वित्तीय सहायता प्राप्त करने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा, जिससे पहले से ही संघर्षरत पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था पर और दबाव बढ़ेगा।

    शहबाज शरीफ सरकार के लिए यह एक बड़ा झटका होगा, जो हाल ही में FATF की ग्रे लिस्ट से बाहर निकलने में सफल रही थी। यह चेतावनी पाकिस्तान के परमाणु और मिसाइल कार्यक्रमों की पारदर्शिता और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के पालन पर गंभीर सवाल उठाती है, और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी चिंता का विषय है।

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