अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की ताजपोशी के साथ ही दुनियाभर में उथल-पुथल देखी जा रही है। यह इसलिए भी है क्योंकि ट्रंप के स्टैंड का कोई भरोसा नहीं रहता। जिस तरह से उन्होंने अमेरिका फस्र्ट की नीति अपनाई है, उससे कई देश अपने स्तर पर निपटने के लिए जुटे हैं। इन्हीं में से भारत और चीन भी हैं। इससे पहले भारत अमेरिका का स्वाभाविक सहयोगी रहा है और चीन से उसका तनाव चरम पर भी पहुंच चुका है। ऐसे में डोनाल्ड ट्रंप का दूसरा कार्यकाल काफी अहम होगा। यह देखने वाली बात होगी कि क्या उनकी मोदी के साथ केमिस्ट्री उसी तरह रहती है, जैसे पहले कार्यकाल में थी। इस बीच संभावना यह है कि भारत चीन और भी नजदीक आ सकते हैं।
गलवान घाटी संघर्ष के बाद यह महत्वपूर्ण प्रगति
भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री 26-27 जनवरी को चीन के आधिकारिक दौरे पर हैं। हालांकि यह दौरा भारत-चीन संबंधों को मजबूत बनाने के प्रयासों के तहत है लेकिन इससे यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि भारत और चीन फिर से एक दूसरे के नजदीक आ सकते हैं। मिस्री की यात्रा भारत-चीन सीमा विवाद को लेकर भी है। इससे पहले समझौते के तहत दोनों देशों ने एलएसी से पीछे हटने का निर्णय ले लिया है। रक्षा मंत्रालय भी स्पष्ट कर चुका है कि विघटन की प्रक्रिया अब पूरी हो चुकी है। 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद यह महत्वपूर्ण प्रगति है।
पीएम मोदी की खास रणनीति
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की ताजपोशी के बाद हालात बदल रहे हैं। भारत स्पष्ट कर चुका है कि वैश्विक गठबंधनों में बदलाव के बावजूद चीन के साथ स्थिर और रचनात्मक संबंध बनाए रखना का इच्छुक है। शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन ने भी अमेरिका की मुखर विदेश नीतियों की जवाब में भारत सहित पड़ोसी देशों के साथ राजनीतिक संबंधों को मजबूत करने में रुचि दिखाई है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत भी अमेरिका, चीन और अन्य वैश्विक शक्तियों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करते हुए जटिल भू-राजनीतिक वातावरण में आगे बढ़ रहा है। ऐसे में विदेश सचिव की चीन यात्रा महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।