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    PM मोदी जब अचानक पहुँच गए थे लाहौर; 10 साल में पाक से कैसे बदल गए रिश्ते

    25 दिसंबर 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अचानक हुई लाहौर यात्रा और उसके बाद के एक दशक में भारत-पाकिस्तान संबंधों में आए नाटकीय बदलावों का विश्लेषण करता है। ठीक 10 साल पहले, प्रधानमंत्री मोदी ने काबुल से लौटते समय सबको चौंकाते हुए लाहौर में रुकने का फैसला किया था। यह तत्कालीन पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ के जन्मदिन और उनकी पोती की शादी का अवसर था। हवाई अड्डे पर गर्मजोशी से गले मिलना और नवाज शरीफ के पुश्तैनी घर ‘जाति उमरा’ तक हेलिकॉप्टर से जाना, दक्षिण एशिया में शांति की एक नई किरण के रूप में देखा गया था। इसे ‘बर्थडे डिप्लोमेसी’ कहा गया, जिसका उद्देश्य दशकों पुराने तनाव को व्यक्तिगत संबंधों के जरिए सुलझाना था।

    उम्मीदों पर आतंकी प्रहार

    दुर्भाग्य से, शांति की यह उम्मीद बहुत कम समय तक टिकी रही। लाहौर यात्रा के मात्र एक सप्ताह के भीतर, पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमला हुआ। इसके बाद उरी हमला और फिर 2019 में पुलवामा हमला हुआ, जिसने द्विपक्षीय संबंधों को पूरी तरह पटरी से उतार दिया। भारत ने अपनी नीति बदली और “आतंक और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते” का कड़ा रुख अपनाया।

    ऑपरेशन सिंदूर और बदलती रणनीति

    लेख के संदर्भ में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ या इसी तरह के सैन्य घटनाक्रम भारत की उस बदली हुई रक्षात्मक और आक्रामक नीति को दर्शाते हैं, जहाँ भारत ने सीमा पार जाकर जवाब देना शुरू किया। सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयरस्ट्राइक ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत अब केवल कूटनीति पर निर्भर नहीं रहेगा। 2019 में अनुच्छेद 370 के हटने के बाद पाकिस्तान ने व्यापारिक और राजनयिक संबंध लगभग पूरी तरह समाप्त कर दिए।


    पिछले 10 वर्षों का मुख्य सारांश

    कालखंडप्रमुख घटनासंबंधों की स्थिति
    दिसंबर 2015पीएम मोदी की लाहौर यात्राअत्यधिक सकारात्मक (आशावादी)
    2016 – 2018पठानकोट, उरी हमले और सर्जिकल स्ट्राइकतनावपूर्ण और सैन्य टकराव
    2019पुलवामा हमला और बालाकोट स्ट्राइकयुद्ध जैसी स्थिति
    2019 – 2025अनुच्छेद 370 हटाना और राजनयिक गतिरोध‘कोल्ड पीस’ (कोई संवाद नहीं)

    एक खोया हुआ अवसर?

    आज 10 साल बाद, भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध अपने सबसे निचले स्तर पर हैं। जहाँ भारत एक वैश्विक आर्थिक शक्ति बनने की ओर अग्रसर है, वहीं पाकिस्तान आर्थिक संकट और आंतरिक अस्थिरता से जूझ रहा है। मोदी की वह लाहौर यात्रा इतिहास के पन्नों में एक ‘खोए हुए अवसर’ के रूप में दर्ज हो गई है, जहाँ व्यक्तिगत गर्मजोशी संस्थागत कड़वाहट और सीमा पार आतंकवाद को मात नहीं दे सकी।

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