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    मोहन भागवत के बयान के क्या हैं मायने.. क्या BJP-RSS में चल रही तनातनी?

    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानि कि आरएसएस का क्या प्रभाव है, इसके दो उदाहरण सामने हैं। पहले उदाहरण 2004 का है, जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी ने चुनाव लड़ा और शायनिंग इंडिया का नारा दिया। नतीजे आए तो एनडीए सत्ता से बाहर था और यूपीए ने 10 साल तक सत्ता संभाली। माना जाता है कि तब भाजपा और आरएसएस में ठन गई थी। अटलजी की हार के बाद संघ ने साफ कर दिया कि दिल्ली से अब कोई अध्यक्ष नहीं बनेगा। हुआ भी यही और नागपुर से नितिन गडकरी राज्य की राजनीति से सीधे राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। बहरहाल 2014 में नरेंद्र मोदी का उदय हुआ और 10 साल उन्होंने सत्ता संभाली। जनवरी 2024 में अयोध्या में श्रीराम का मंदिर बन गया। आरएसएस का भी सपना पूरा हुआ। मोहन भागवत खुद पहुंचे और मोदी को संत बताया। इसके बाद चुनाव आते-आते आरएसएस-बीजेपी के संबंध बिगड़ गए। खुद जेपी नड्डा ने कहा कि आरएसएस ने हमें अकेले छोड़ दिया। माना जा रहा है कि इसी वजह से लोकप्रिय होने के बाद भी मोदी बहुमत का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाए। राम मंदिर बनने के बाद भी भाजपा की झोली में वोट कम पड़े।

    भागवत के निशाने पर बीजेपी-मोदी?

    आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने मणिपुर के बहाने मोदी पर कटाक्ष किया कि सालभर बाद भी स्थिति जस की तस है। उन्होंने कहा कि चुनाव में वह क्यों हुआ, कैसे हुआ, क्या हुआ, इसमें संघ नहीं उलझता। हम लोकमत परिष्कार का काम कर्तव्य करते रहते हैं और इस बार भी किया है। भागवत ने कटाक्ष किया विपक्ष को विरोधी नहीं माना जाना चाहिए। चुनाव जिस तरह कटुता के साथ लड़ा गया, वह ठीक नहीं है। उन्होंने धम्र को लेकर कहा कि सभी धर्मों का सम्मान है। संघ नतीजों के विश£ेषण में नहीं उलझता। दरअसल माना जा रहा है कि यह सीख भागवत ने मोदी और बीजेपी को दी है। मोदी ने जिस आक्रामकता से चुनाव लड़ा। मुजरा, मुसलमान, मटन, मुस्लिम आरक्षण का जिक्र किया, उससे संभवत: आरएसएस सहमत नहीं है।

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