चक्रवात दाना, चक्रवात फेंगल, चक्रवात असानी और करीम.. न जाने कितने नाम होंगेे जो दहशत के पर्याय बने हैं। सवाल यह है कि इन चक्रवातों का नाम कैसे पड़ा और कब से शुरुआत हुई। बात वर्ष 2000 की है जब वल्र्ड मेट्रोलॉजिकल आर्गनाइजेशन/ यूनाइटेड नेशनस इकोनॉमिक्स एंड सोशल कमीशन फॉर एशिया एंड पेसिफिक के तहत चक्रवातों के नामकरण की प्रक्रिया शुरू हुई। शुरुआती दौर में 8 देशों ने इस प्रक्रिया में भाग लिया था। बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्यांमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका और थाईलैंडके बाद 2018 में 5 और देश, ईरान, कतर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और यमन भी इस लिस्ट में शामिल हो गए।
इसलिए पड़ी नाम की जरूरत
जब भी किसी क्षेत्र में चक्रवात आता है तो मौसम बिगडऩे के साथ तेज रफ्तार से हवाएं चलती हैं और बड़ा नुकसान तक होता है। इससे बचने के लिए प्रभावित देश के मौसम और आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा चेतावनी जारी की जाती है ताकि जान-माल की रक्षा की जा सके। यदि इस दौरान उसी क्षेत्र में कोई दूसरा चक्रवात बन जाता है तो सरकार और स्थानीय लोगों द्वारा यह पहचान करने में आसानी होती है कि किस तूफान से बचने के लिए क्या हिदायत दी गई है। इसलिए चक्रवात का नाम देना जरूरी होता है।
अक्टूबर में आया था दाना
हाल में 24 अक्टूबर को दाना चक्रवात पश्चिम बंगाल और ओडिशा के तटों से टकराया था। यह नाम सऊदी अरब ने दिया था। दाना एक अरबी शब्द है, जिसका हिंदी में अर्थ उदारता होता है।
यह है फेंगल का अर्थ
आईएमडी के मुताबिक चक्रवात फेंगल से तमिलनाडु के तटीय क्षेत्रों में संभावित जलभराव हो सकता है। निचले और तटीय इलाकों के निवासियों से सतर्क रहने कहा गया है। फेंगल अरबी भाषा का शब्द है और इसका अर्थ उदासीन होता है।
कौन तय करता है नाम
जब किसी क्षेत्र में चक्रवात आता है, तो उसका नाम संबंधित देशों द्वारा तय किया जाता है। विश्व मौसम विज्ञान संस्थान द्वारा चक्रवातों का नाम और इसकी सूची को रखा जाता है। अलग-अलग देशों द्वारा चक्रवातों के नाम की लिस्ट भेजी जाती है। इस दौरान यह ध्यान रखा जाता है कि चक्रवात किसी जाति विशेष, धर्म या किसी समुदाय से जुड़ा नहीं होना चाहिए। चक्रवात का नाम ऐसा न हो, जिससे किसी व्यक्ति विशेष की भावना आहत हो। अंत में विश्व मौसम विज्ञान संस्थान की समिति चक्रवात के नाम पर मुहर लगती है।