राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने रविवार को कोलकाता में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान संघ के मूल उद्देश्यों और उसकी कार्यप्रणाली पर प्रकाश डाला। उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ का उद्देश्य राजनीतिक शक्ति प्राप्त करना नहीं, बल्कि भारत को पुनः ‘विश्व गुरु’ के पद पर प्रतिष्ठित करना है।
संघ का मूल मंत्र: ‘भारत माता की जय’
डॉ. भागवत ने कहा कि संघ की स्थापना के उद्देश्य को एक वाक्य में समझा जा सकता है। उन्होंने बताया कि संघ की प्रार्थना का सार “भारत माता की जय” है। उनके संबोधन के मुख्य बिंदु निम्नलिखित रहे:
- समाज की शक्ति: संघ का कार्य समाज में ऐसी शक्ति पैदा करना है जिससे भारत का कृतित्व विश्व पटल पर चमके।
- भारत एक परंपरा है: उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत केवल एक भौगोलिक टुकड़ा नहीं है, बल्कि एक विशिष्ट स्वभाव और परंपरा का नाम है। संघ इसी स्वभाव को कायम रखते हुए समाज को तैयार करने का माध्यम है।
- निस्वार्थ भाव: सरसंघचालक ने स्पष्ट किया कि संघ किसी राजनीतिक उद्देश्य, स्पर्धा या किसी के विरोध में खड़ा नहीं हुआ है।
हिंदू समाज का संगठन और संरक्षण
डॉ. भागवत ने अपने संबोधन में यह भी साफ किया कि संघ की विचारधारा सकारात्मक है। उन्होंने कहा, “यह संघ हिंदू समाज के संगठन, उन्नति और संरक्षण के लिए समर्पित है।” उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि संघ किसी विशेष परिस्थिति की प्रतिक्रिया (Reaction) में शुरू नहीं हुआ था, बल्कि इसका जन्म समाज के सर्वांगीण उत्थान के लिए हुआ है।
“भारतवर्ष फिर से विश्व का गुरु बने, इसके लिए समाज को मानसिक और आध्यात्मिक रूप से तैयार करना ही संघ का वास्तविक कार्य है।” – डॉ. मोहन भागवत


