उप्र के प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 से होने वाले महाकुंभ की ओर सभी की नजरें टिकी हुई हैं। खासतौर पर हिंदुओं को इस सबसे बड़े धार्मिक समागम का बेसब्री से इंतजार है। गंगा नदी के संगम घाट में हर 12 साल बाद महाकुंभ का आयोजन होता है। यह वह स्थान है जहां गंगा का मटमैला पानी, यमुना के हरे पानी में मिलता है। यहीं मिलती है अदृश्य मानी जाने वाली सरस्वती नदी। वैसे तो यह अदृश्य नदी है, पर माना जाता है कि यह भूगर्भ में बहती है। संगम में नदी के बीचों-बीच एक छोटे से प्लॅटफॉर्म पर खड़े होकर पुजारी विधि-विधान से पूजा-अर्चना कराते हैं। इसकी धार्मिक महत्ता के कारण धर्मपरायण हिंदू के लिए संगम में एक डुबकी जीवन को पवित्र करने वाली मानी जाती है। महाकुंभ पर संगम मानो जीवंत हो उठता है। देश विदेश भर से श्रद्धालु यहां आते हैं और इसकी रौनक बढ़ाते हैं।
घाटों का हो रहा पुनर्निर्माण
यह स्थान संगम सिविल लाइन्स से 7 किमी पर पड़ता है। इसे अकबर के किले के परकोटे से भी देखा जा सकता है। संगम के लिए किराये पर नाव किले के पास से ली जा सकती है। पवित्र संगम पर दूर-दूर तक पानी और गीली मिट्टी के तट फैले हैं। हालांकि योगी सरकार इन घाटों का पुननिर्माण करा रही है।
हिंदुओं के लिए महत्वपूर्ण स्थान
प्रयागराज में स्थित प्रयाग का बतौर तीर्थ हिन्दुओं में एक महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। परंपरागत तौर पर नदियों का मिलन बेहद पवित्र माना जाता है। संगम का मिलन बेहद महत्वपूर्ण है। यहां गंगा, यमुना और सरस्वती का अद्भुत मिलन होता है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान विष्णु अमृत से भरा कुंभ (बर्तन) लेकर जा रहे थें कि असुरों से छीना-झपटी में अमृत की चार बूंदें गिर गई थीं। यह बूंदें प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन के तीर्थस्थानों में गिरी थीं। तीर्थ वह स्थान होता है जहां कोई भक्त इस नश्वर संसार से मोक्ष को प्राप्त करता है। ऐसे में जहां-जहां अमृत की बूंदें गिरीं, वहां 3-3 साल के अंतराल पर बारी-बारी से कुंभ मेले का आयोजन होता है। इन तीर्थों में भी संगम को तीर्थराज के नाम से जाना जाता है। इसलिए देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु यहां आते हैं।