बॉलीवुड के लीजेंड मनोज कुमार के कलाकारों के साथ-साथ राजनेताओं से भी अच्छे संबंध थे। 1965 में भारत और पाकिस्तान का युद्ध हुआ था और इस युद्ध के बाद ही मनोज कुमार ने लाल बहादुर शास्त्री से मुलाकात की। शास्त्री जी ने अभिनेता से युद्ध से होने वाली परेशानियों पर एक फिल्म बनाने के लिए कहा। उन दिनों मनोज कुमार को फिल्म बनाने का अनुभव नहीं था। इसके बावजूद उन्होंने जय जवान जय किसान से प्रेरित होकर उपकार फिल्म बनाई, जिसे दर्शकों ने खूब पसंद किया। हालांकि यह फिल्म लाल बहादुर शास्त्री नहीं देख पाए थे। ताशकंद से लौटने के बाद लाल बहादुर शास्त्री इस फिल्म को देखने वाले थे, लेकिन उनका आकस्मिक निधन हो गया।
नाम बदला, सिनेमा में ऐसे हुई एंट्री
बॉलीवुड के दिग्गज कलाकार मनोज कुमार ने सिनेमा से प्रभावित होकर अपना नाम बदल लिया था, लेकिन फैंस उन्हें प्यार से भारत कुमार कहते थे। मनोज कुमार का असली नाम था- हरिकिशन गिरि गोस्वामी। उन्होंने देशभक्ति से लबरेज कई शानदार फिल्मों में अपने अभिनय से दर्शकों के दिलों को जीता। 24 जुलाई 1937 को हरिकिशन गिरि गोस्वामी (मनोज कुमार) का जन्म ऐबटाबाद (अब के पाकिस्तान) में हुआ था। उनके माता-पिता बंटवारे के बाद दिल्ली आ गए। मनोज कुमार ने बंटवारे के दर्द को अपनी आंखों से देखा। बचपन से ही एक्टिंग का काफी शौक रहा और वे मुंबई चले आए। मनोज कुमार अपने कॉलेज के दिनों में काफी हैंडसम हुआ करते थे। इसी वजह से वह कॉलेज में थिएटर से जुड़ गए और फिर उन्होंने एक दिन दिल्ली से मुंबई का रास्ता चुन लिया। एक्टिंग करियर की शुरुआत साल 1957 में आई फिल्म फैशन से की थी। इसके बाद 1960 में उनकी फिल्म कांच की गुडिय़ा रिलीज हुई। मनोज कुमार ने उपकार, पत्थर के सनम, रोटी कपड़ा और मकान, संन्यासी और क्रांति जैसी कमाल की फिल्में दीं।
इमरजेंसी की आलोचना की तो झेली परेशानियां
मनोज कुमार के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ संबंध अच्छे जरूर थे, लेकिन उन्होंने इमरजेंसी का विरोध करके सरकार को नाराज कर दिया था। मनोज कुमार जब अपनी सुपरहिट फिल्म शोर फिर से सिनेमाघरों में रिलीज करने जा रहे थे, उससे पहले ही यह फिल्म दूरदर्शन पर आ गई थी। फिल्म दस नंबरी को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने बैन कर दिया था।मनोज कुमार को इमरजेंसी पर बनी डॉक्युमेंट्री डायरेक्ट करने का प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया। मनोज कुमार ने लेखिका अमृता प्रीतम को फोन किया लताड़ लगाते हुए कहा कि क्या आपने लेखक के रूप में समझौता कर लिया है। अमृता इससे शर्मिंदा हो गई थीं और उनसे स्क्रिप्ट फाड़ कर फेंक देने के लिए कह दिया।