भोपाल गैस त्रासदी सुनते ही सिहरन पैदा हो जाती है। इस हादसे से हजारों लोग को मौत के घाट उतार दिए तो आज 40 साल बाद भी लोग इससे प्रभावित हैं। तब अमेरिका के वॉरेन एंडरसन ने भोपाल में यूनियन कार्गो कार्बाइड कंपनी स्थापित की थी। 80 के दशक में लगा कि इस कंपनी से प्रदेश की तरक्की होगी और हजारों लोगों को नौकरियां मिलेंगी। भले ही कुछ लोगों को नौकरी मिली हो लेकिन उससे ज्यादा लोग मौत की आगोश में सो गए। यह दिन था 3 दिसंबर 1984 का, जब वारेन एंडरसन की कंपनी यूनियन कार्बाइड से आइसोसायनाइड गैस लीक हुई। जैसे ही यह गैस हवा में फैली तो 3000 लोग सोते-सोते इस दुनिया को छोडक़र चले गए। गैस की चपेट में आकर अब तक 23 हजार लोगों ने अपनी जान गवां दी।करीब 20 हजार लोग पूरी जिंदगी बीमारी से तड़पते रहे और कहीं पीढिय़ां विकलांग हो गईं। आंकड़ों की माने तो करीब 5.21 लाख लोगों पर इसका असर हुआ है। तब यह त्रासदी सिर्फ भोपाल के लिए ही नहीं पूरे देश के लिए जख्म की तरह थी।
जिम्मेदार बचे, सजा निर्दोषों ने भुगती
तब की तत्कालीन अर्जुन सिंह की सरकार ने वारेन एंडरसन को भारत के कानून से बचाकर अमेरिका भेज दिया और अमेरिका जाकर वारेन एंडरसन ने कंपनी का नाम बदलकर फिर से कारोबार शुरू कर दिया। यूनियन कार्बाइड के मुखिया वारेन एंडरसन समेत 11 अधिकारियों के खिलाफ गैर जमानती धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज हुई थी। नरसंहार के कुछ दिन बाद वारेन एंडरसन भोपाल आया, तब उसके खिलाफ गैर जमानती एफआईआर दर्ज थी, मगर उसे गिरफ्तार नहीं किया गया। यूनियन कार्बाइड के अफसर को सजा मिली, मगर सेशन कोर्ट में उनकी सजा कम हो गई। माना जा रहा है कि तब अमेरिका के दबाव में आकर केंद्र सरकार ने हेंडरसन को सुरक्षित वापस भेज दिया। तब केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी। सवाल यही है कि इतनी बड़ी त्रासदी हो गई और सरकारी लोगों को मरते छोडक़र राजनीति करती रही। इसका खामियाजा उन लोगों ने भोक्ता जो जिनका कोई कसूर नहीं था।
इसलिए चर्चाओं में यूनियन कार्बाइड का कचरा
इस हादसे के करीब 40 साल बाद इसके जहरीले कचरे के निस्तारण पर मुद्दा एक बार फिर गरम है। यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को पुलिस सुरक्षा में बुधवार की रात 12 बजे कंटेनरों में भरकर इंदौर के पीथमपुर भेजा गया है। इस जहरीले कचरे को 180 दिनों में जलकर खत्म किया जाएगा।