प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की प्रशंसा कर एक नया अध्याय जोड़ दिया है, जिसे कई लोग ऐतिहासिक कदम मान रहे हैं। यह बयान ऐसे समय में आया है जब आरएसएस अपने 100 साल पूरे होने का जश्न मना रहा है। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब इस संगठन ने राष्ट्रीय मंच पर पहचान हासिल की हो।
इतिहासकारों और विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, आरएसएस को 1963 में गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने के लिए आधिकारिक तौर पर आमंत्रित किया गया था। यह तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का फैसला था। 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध के दौरान आरएसएस स्वयंसेवकों ने जिस तरह से देश की मदद की और सैनिकों के लिए राहत कार्यों में योगदान दिया, उससे प्रभावित होकर नेहरू ने उन्हें यह सम्मान दिया था। कहा जाता है कि उस परेड में 3,500 से अधिक आरएसएस स्वयंसेवकों ने भाग लिया था।
वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आरएसएस की 100 साल की यात्रा की सराहना करते हुए उसे ‘दुनिया का सबसे बड़ा एनजीओ’ बताया। हालांकि, यह पहली बार है जब किसी प्रधानमंत्री ने लाल किले जैसे राष्ट्रीय मंच से आरएसएस की तारीफ की है, लेकिन यह कहना गलत होगा कि किसी प्रधानमंत्री ने पहली बार संघ की खुले तौर पर प्रशंसा की है।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी खुद एक आजीवन स्वयंसेवक थे और उन्होंने कई बार सार्वजनिक रूप से आरएसएस के साथ अपने जुड़ाव और संगठन के प्रति अपने सम्मान को व्यक्त किया था। वाजपेयी ने अक्सर कहा था कि संघ उनकी ‘आत्मा’ है। इसलिए, मोदी की प्रशंसा एक ऐतिहासिक मंच पर हुई है, लेकिन आरएसएस और सत्ता के बीच का संबंध पहले भी रहा है, जिसे वाजपेयी जैसे नेताओं ने खुलकर स्वीकार किया था। यह दोनों घटनाएँ आरएसएस की देश में बदलती भूमिका और स्वीकार्यता को दर्शाती हैं।