फ्लोरिडा के मार-ए-लागो में यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की से मुलाकात के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र (UN) को लेकर एक बड़ा और कड़ा फैसला लिया है। ट्रंप प्रशासन ने संयुक्त राष्ट्र को दी जाने वाली अमेरिकी फंडिंग में भारी कटौती का ऐलान करते हुए वैश्विक राजनीति में हलचल मचा दी है।
फंडिंग में भारी कटौती का ऐलान
डोनाल्ड ट्रंप ने स्पष्ट किया है कि उनका प्रशासन संयुक्त राष्ट्र को मानवीय सहायता और अन्य कार्यों के लिए केवल 2 अरब डॉलर (लगभग 16,800 करोड़ रुपये) ही देगा। यह राशि अमेरिका द्वारा पहले दी जाने वाली फंडिंग की तुलना में बेहद कम है। ट्रंप का यह कदम उनके ‘अमेरिका फर्स्ट’ (America First) एजेंडे का हिस्सा माना जा रहा है, जिसके तहत वह विदेशी सहायता में कटौती कर अमेरिकी करदाताओं का पैसा बचाने की बात करते रहे हैं।
ट्रंप की सख्त चेतावनी
फंडिंग में कटौती के साथ ही ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र को कड़ी चेतावनी भी दी है। उनके मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
- जवाबदेही की मांग: ट्रंप ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र को अपनी कार्यप्रणाली में सुधार करना होगा और अधिक पारदर्शी बनना होगा। उन्होंने संगठन की दक्षता पर सवाल उठाए हैं।
- प्रभावी उपयोग: ट्रंप का तर्क है कि अमेरिका दुनिया में सबसे ज्यादा योगदान देता है, लेकिन उसे उसके बदले उचित सम्मान या परिणाम नहीं मिलते। उन्होंने कहा कि फंड का इस्तेमाल केवल वास्तविक मानवीय जरूरतों के लिए होना चाहिए, न कि नौकरशाही की फिजूलखर्ची के लिए।
- भविष्य की धमकी: ट्रंप ने संकेत दिया कि यदि संयुक्त राष्ट्र ने अमेरिकी हितों और उनकी शर्तों के अनुरूप बदलाव नहीं किए, तो इस फंडिंग को और भी कम किया जा सकता है या पूरी तरह रोका जा सकता है।
वैश्विक प्रभाव और चिंताएं
अमेरिका संयुक्त राष्ट्र का सबसे बड़ा वित्तीय योगदानकर्ता है। इस कटौती का सीधा असर यूएन के वैश्विक अभियानों पर पड़ेगा:
- खाद्य और स्वास्थ्य संकट: अकाल और महामारियों से जूझ रहे गरीब देशों में चल रहे राहत कार्य प्रभावित हो सकते हैं।
- शांति मिशन: दुनिया के विभिन्न अशांत क्षेत्रों में तैनात यूएन शांति सेना के बजट में कमी आ सकती है।
- राजनयिक तनाव: ट्रंप के इस फैसले से अमेरिका और अन्य सदस्य देशों के बीच तनाव बढ़ने की संभावना है, जो बहुपक्षवाद (Multilateralism) के समर्थक हैं।
डोनाल्ड ट्रंप का यह फैसला साफ तौर पर संकेत देता है कि उनके दूसरे कार्यकाल में वैश्विक संस्थाओं के प्रति अमेरिका का रुख बेहद सख्त रहने वाला है। वह चाहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र केवल एक चर्चा का केंद्र न रहकर अमेरिका के दृष्टिकोण के साथ तालमेल बिठाकर काम करे।


