अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका और पाकिस्तान के बीच संबंधों में गर्माहट देखी गई है। इसी बीच, अमेरिका ने पाकिस्तान के बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) और उसके विंग मजीद ब्रिगेड को ‘विदेशी आतंकवादी संगठन’ घोषित कर दिया है। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर (जिन्हें ‘मुल्ला’ मुनीर भी कहा जाता है) अमेरिका दौरे पर हैं और ट्रंप प्रशासन के साथ उनकी बातचीत चल रही है।
क्या है ट्रंप का दांव?
इस घटनाक्रम से यह सवाल उठ रहा है कि क्या ट्रंप प्रशासन इस बलूच मुद्दे को भारत के खिलाफ एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकता है? पाकिस्तान लंबे समय से बिना किसी सबूत के भारत पर बलूच विद्रोहियों को समर्थन देने का आरोप लगाता रहा है। अमेरिका द्वारा इन संगठनों को आतंकी घोषित करने से पाकिस्तान के इस बेबुनियाद आरोप को एक तरह का बल मिल सकता है।
- राजनीतिक लाभ: ट्रंप प्रशासन का यह कदम पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। अमेरिका को बलूचिस्तान के खनिज संसाधनों में रुचि है और बीएलए को आतंकी घोषित करने से पाकिस्तान के लिए इस क्षेत्र में स्थिरता लाना आसान हो सकता है।
- भारत पर दबाव: भले ही भारत पर लगाए गए आरोप टिक न पाएं, लेकिन अमेरिका की यह कोशिश भारत को कूटनीतिक रूप से परेशान कर सकती है। यह कुछ हद तक कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के मामले जैसा हो सकता है, जिन्होंने एक खालिस्तानी नेता की हत्या में भारत पर आरोप लगाया था।
पाकिस्तान की चाल
पाकिस्तान के सेना प्रमुख मुनीर ट्रंप को यह समझाने में सफल रहे हैं कि पाकिस्तान एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक सहयोगी है, खासकर ईरान के मुद्दे पर। बीएलए पर प्रतिबंध लगाकर पाकिस्तान अमेरिका को यह संदेश देना चाहता है कि वह आतंकवाद के खिलाफ है, जबकि असल में वह अपने ही देश के अंदर चल रहे प्रतिरोध आंदोलन को कुचलने की कोशिश कर रहा है। कुल मिलाकर, यह एक जटिल भू-राजनीतिक खेल है जिसमें ट्रंप, मुनीर और भारत सभी अपनी-अपनी जगह हैं। यह देखना बाकी है कि यह दांव भारत के लिए क्या चुनौतियां लाता है और भारत इसका कैसे सामना करता है।