अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का पाकिस्तान के प्रति झुकाव स्पष्ट रूप से सामने आया है, जिसे कई विश्लेषक एक रणनीतिक भूल मान रहे हैं। रिचर्ड निक्सन के बाद ट्रंप दूसरे ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति हैं जो इतने खुले तौर पर पाकिस्तान पर बड़ा दांव लगा रहे हैं, लेकिन निक्सन के विपरीत, ट्रंप के इस “पाकिस्तान कार्ड” के पीछे कोई मज़बूत रणनीतिक तर्क नहीं है।
ट्रंप के लिए, पाकिस्तान एकमात्र ऐसा देश बन गया है जो पैसों के लिए किसी भी नियम-कानून को ताक पर रखकर अमेरिका की “जी हुज़ूरी” कर सकता है। ऐसे समय में जब ट्रंप प्रशासन अपने पारंपरिक सहयोगियों को किनारे कर रहा है, पाकिस्तान चापलूसी और राजनीतिक मांगों को पूरा करके उनकी सहयोगी सूची में शीर्ष पर पहुँच गया है। पाकिस्तानी आर्मी चीफ असीम मुनीर को वॉशिंगटन में मिली इज्जत इसकी मिसाल है, जिसके बाद कभी इमरान खान के समर्थक माने जाने वाले ट्रंप के करीबी रिचर्ड ग्रेनेल को भी चुप रहना पड़ा है।
आइए, उन चार कारणों को समझते हैं जिनके चलते ट्रंप ने ‘मोदी के भारत’ को दरकिनार करते हुए पाकिस्तान के साथ जाने का फैसला किया है:
1. माइनिंग और बिजनेस
ट्रंप के पाकिस्तान प्रेम के पीछे एक बड़ा कारण खनन (माइनिंग) का व्यापार है। अमेरिका की बड़ी खनन कंपनी बैरिक माइनिंग कॉर्पोरेशन (BMC) ने हाल ही में माली में तख्तापलट के बाद एक खदान खो दी थी, जिससे उसे 1 अरब डॉलर का नुकसान हुआ।
- इसके बाद से ही अमेरिका, पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित विशाल रेको दिक (Reko Diq) सोने की खदान को लेकर चिंतित हो गया है।
- रेको दिक खदान में BMC खनन कर रही है। अमेरिका चाहता है कि पाकिस्तान की सेना यह सुनिश्चित करे कि माली की तरह यहाँ कोई नुकसान न हो। यह माइनिंग और बिजनेस का खेल ट्रंप को पाकिस्तान के करीब ला रहा है।
2. चीन को रोकने की अमेरिकी रणनीति
अमेरिकी हलकों में यह तर्क दिया जाता है कि अमेरिका पाकिस्तान को चीन के हाथों में जाने से रोकना चाहता है। हालांकि, सच्चाई यह है कि चीन पहले ही पाकिस्तान में बहुत गहरी पैठ बना चुका है।
- पाकिस्तानी सेना इस सौदेबाज़ी में अमेरिका से और ज़्यादा F-16 फाइटर जेट और अन्य सैन्य उपकरण हासिल करना चाहती है।
- लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि पाकिस्तानी सेना की चीन पर निर्भरता लगातार बढ़ रही है, ऐसे में अमेरिका के लिए चीन को हटाना लगभग असंभव हो चुका है।
3. इस्लामिक वर्ल्ड को साधने की चुनौती
ट्रंप प्रशासन गाजा समझौते जैसे संवेदनशील मामलों में पाकिस्तान को अल्पकालिक वार्ताकार के तौर पर इस्तेमाल करना चाहता है। पाकिस्तान को लगता है कि वह इस्लामिक वर्ल्ड में अमेरिका का पहला समर्थन हासिल करके उपयोगी साबित हो सकता है।
- हालांकि, पाकिस्तान की इस्लामिक दुनिया में दखल ऐतिहासिक रूप से सीमित रही है, लेकिन ट्रंप को यह एक तात्कालिक लाभ का सौदा नज़र आ रहा है।
- पाकिस्तान ट्रंप की ऐसी किसी भी राजनीतिक मांग को पूरा करने को तैयार हो सकता है जो सऊदी अरब या कतर जैसे देश न करें।
4. भारत पर दबाव बनाने की रणनीति
ट्रंप भारत की घरेलू राजनीति में पाकिस्तान की भूमिका को दबाव बनाने के एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करना चाहते हैं। ट्रंप को यह सबसे फ़ायदेमंद सौदा लग रहा है, क्योंकि उन्हें लगता है कि पाकिस्तान से नज़दीकी दिखाकर वह भारत पर अपनी माँगें मनवाने के लिए दबाव डाल सकते हैं।
हालांकि, विश्लेषकों का मानना है कि यह रणनीति ट्रंप पर उल्टी पड़ सकती है। भारत पर दबाव बनाने की कोशिश से भारत के अंदर राष्ट्रवादी भावनाएँ और मज़बूत होंगी, जिससे भारत-अमेरिका के संबंध, जिन्हें पिछले पाँच राष्ट्रपतियों ने मज़बूत किया है, को भारी नुकसान होगा। ट्रंप प्रशासन पाकिस्तान में एक बहुउद्देशीय परियोजना पर काम कर रहा है, इस उम्मीद में कि वह उस निवेश पर फायदा उठाएगा जिसका चीन पहले ही भरपूर लाभ उठा चुका है।