अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि रूस और चीन जैसे देशों द्वारा लगातार परमाणु गतिविधियों को अंजाम दिए जाने के कारण अब अमेरिका भी पीछे नहीं रहेगा। उन्होंने पेंटागन को तुरंत परमाणु हथियारों के परीक्षण की तैयारी शुरू करने का निर्देश दिया है। पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में, पारंपरिक भूमिगत परमाणु परीक्षणों को शामिल करने के सवाल पर उन्होंने अप्रत्यक्ष जवाब दिया, “आपको बहुत जल्द पता चल जाएगा। लेकिन हम कुछ परीक्षण करने वाले हैं।” इस बयान के बाद वैश्विक स्तर पर नए परमाणु हथियार दौड़ की आशंका तेज हो गई है।
अमेरिकी परमाणु परीक्षणों पर रोक का इतिहास
अमेरिका ने पहले बड़े पैमाने पर परमाणु परीक्षण किए, लेकिन बाद में वैश्विक संधियों और चिंताओं के कारण इन पर रोक लगा दी गई थी: 1945 से 1992 तक अमेरिका ने कुल 1,054 परमाणु परीक्षण किए, जिनमें से अधिकांश नेवादा रेगिस्तान में हुए। पर्यावरणीय चिंताओं और शीत युद्ध के बाद बढ़ते दबाव के चलते इन परीक्षणों पर रोक लगाई गई।
- 1963: आंशिक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि पर हस्ताक्षर, जिसने वायुमंडलीय और समुद्री परीक्षणों को प्रतिबंधित किया।
- 1992: अमेरिकी कांग्रेस ने भूमिगत परीक्षणों पर भी रोक लगाई।
- CTBT (व्यापक परीक्षण प्रतिबंध संधि): अमेरिका ने इस पर हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन अब तक इसकी रैटिफिकेशन (स्वीकृति) नहीं की गई है।
📢 वैश्विक प्रतिक्रिया और चिंताएं
इस संभावित कदम को लेकर विशेषज्ञों और राजनेताओं ने गंभीर चिंताएँ व्यक्त की हैं: विशेषज्ञों का कहना है कि इससे पर्यावरणीय खतरे और वैश्विक अस्थिरता बढ़ सकती है। नेवादा के सांसदों ने कहा कि यह फैसला दुनिया को फिर से शीत युद्ध जैसी स्थिति में धकेल सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का तर्क है कि अमेरिका पहले से ही सुपरकंप्यूटर और सिमुलेशन तकनीक का उपयोग करके हथियारों की सुरक्षा जांच करता है, इसलिए वास्तविक परीक्षण की कोई तकनीकी आवश्यकता नहीं है। ट्रंप के समर्थक इसे रूस और चीन को चेतावनी देने का कदम बताते हैं। उनका तर्क है कि अमेरिका को अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करना चाहिए।


