मैसूर के शासक टीपू सुल्तान को अंग्रेजों से लड़ाई में शहादत के लिए जाना जाता है। हालांकि उन पर राजनीति भी बहुत हुई है। कांग्रेस समेत उसके सहयोगी दल उन्हें स्वतंत्रता सैनानी के रूप में आदर्श बताते हैं तो भाजपा और उसके सहयोगी दल आततायी के रूप में उनका उल्लेख करते हैं। बहरहाल विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ‘टीपू सुल्तान : द सागा ऑफ मैसूर इंटररेग्नम 1761-1799’ पुस्तक का विमोचन किा और कह दिया कि टीपू सुल्तान एक जटिल शख्सियत हैं। उनके शासन के कुछ पहलुओं की उपेक्षा की गई है। भारतीय इतिहास ने अधिकतर टीपू सुल्तान की अंग्रेजों से लड़ाई को महत्व दिया, जबकि उनके शासन के प्रतिकूल प्रभावों को नजरअंदाज किया गया। इतिहासकार विक्रम संपत द्वारा लिखित पुस्तक की उन्होंने प्रशंसा भी की।
हम अब वोट बैंक के कैदी नहीं
जयशंकर ने कहा कि कुछ बुनियादी सवाल हैं जिनका आज हम सभी को सामना करना पड़ रहा है। हमारे अतीत को कितना छिपाया गया है। तथ्यों को शासन की सुविधा के अनुसार ढाला गया है। अब की राजनीति अपने हिसाब से तथ्यों को पेश करने की है। जयशंकर ने कहा कि काफी हद तक टीपू सुल्तान के मामले में भी ऐसा ही हुआ। मैसूर के पूर्व शासक के बारे में पिछले कुछ वर्षों में एक विशेष विमर्श प्रचारित किया गया। जयशंकर ने कहा कि पीएम मोदी की सरकार के तहत भारत ने वैकल्पिक दृष्टिकोणों का उदय देखा है। हम अब वोट बैंक के कैदी नहीं हैं और न ही असुविधाजनक सच को सामने लाना राजनीतिक रूप से गलत है।
इतिहास की सबसे जटिल शख्सियत
जयशंकर ने कहा कि टीपू सुल्तान वास्तव में इतिहास में एक बहुत ही जटिल शख्सियत हैं। एक ओर उन्हें एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है, जिन्होंने भारत पर ब्रिटिश औपनिवेशिक नियंत्रण का विरोध किया। यह एक तथ्य है कि उनकी हार और मृत्यु को प्रायद्वीपीय भारत के भाग्य के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जा सकता है। भारतीय इतिहास ने टीपू सुल्तान की अंग्रेजों के साथ लड़ाई पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है, जबकि उनके शासन के अन्य पहलुओं को कम करके आंका या उपेक्षा की है।


