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    ऐसे साथ आये राज और उद्धव, क्या राजनीतिक रूप से एक हो पाएंगे, अब आगे क्या?

    महाराष्ट्र की राजनीति में शुक्रवार को एक ऐतिहासिक दिन तब दर्ज हुआ जब करीब 20 साल बाद चचेरे भाई उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक ही मंच पर एक ‘विजय रैली’ में एक साथ नजर आए। यह घटनाक्रम वर्षों के राजनीतिक अलगाव के बाद उनके संभावित राजनीतिक पुनर्मिलन की ओर इशारा कर रहा है, जिसने राज्य के सियासी समीकरणों को पूरी तरह से बदल दिया है।

    कैसे हुई साथ आने की शुरुआत? ठाकरे बंधुओं के साथ आने की शुरुआत मुख्य रूप से महाराष्ट्र की अस्मिता, मराठी भाषा और संस्कृति से जुड़े मुद्दों पर केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ उनके साझा विरोध से हुई। हाल ही में केंद्र द्वारा प्रस्तावित त्रिभाषा नीति, जिसमें हिंदी को अनिवार्य करने का प्रावधान था, पर दोनों भाइयों ने मुखर होकर आपत्ति जताई। इस मुद्दे पर उनकी एक जैसी सोच ने उन्हें करीब ला दिया। मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने इस मुद्दे पर एक आंदोलन की घोषणा की थी, और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) ने भी इसका समर्थन किया। इस साझा विरोध ने राज्य सरकार को प्रस्तावित नीति को फिलहाल टालने पर मजबूर कर दिया, जिसे ‘मराठी एकता’ की जीत के रूप में देखा गया।

    इसके अलावा, शिवसेना (यूबीटी) का एकनाथ शिंदे गुट द्वारा विभाजन और उद्धव ठाकरे को हुए राजनीतिक नुकसान ने भी उन्हें अपनी पुरानी ताकत वापस पाने के लिए विकल्पों पर विचार करने के लिए प्रेरित किया। राज ठाकरे भी अपनी पार्टी मनसे को राज्य की राजनीति में अपेक्षित सफलता न दिला पाने के कारण एक मजबूत आधार की तलाश में थे।

    क्या राजनीतिक रूप से एक हो पाएंगे? शुक्रवार की रैली में राज ठाकरे ने देवेंद्र फडणवीस पर तंज कसते हुए कहा, “जो काम बालासाहेब नहीं कर पाए, वो फडणवीस ने किया, आज अगर हम साथ हैं तो उनकी वजह से ही हैं।” वहीं, उद्धव ठाकरे ने भावनात्मक अपील करते हुए कहा, “हम साथ आए हैं, हम साथ रहेंगे।” ये बयान दर्शाते हैं कि दोनों भाई महाराष्ट्र में अपने पारंपरिक मराठी वोट बैंक को एकजुट कर एक नई ताकत के रूप में उभरना चाहते हैं।

    अब आगे क्या? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह ‘विजय रैली’ सिर्फ एक शुरुआत है। अगर दोनों भाई राजनीतिक रूप से एक होते हैं, तो इसका सबसे बड़ा असर आगामी बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनावों और भविष्य के विधानसभा चुनावों पर पड़ेगा। यह भाजपा और शिंदे गुट के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है, क्योंकि मराठी वोटों का एक बड़ा हिस्सा उनके पाले से निकलकर ठाकरे बंधुओं के पक्ष में जा सकता है। हालांकि, एमवीए में कांग्रेस और एनसीपी (शरदचंद्र पवार गुट) की भूमिका को लेकर अभी भी अनिश्चितता बनी हुई है, क्योंकि राज ठाकरे के हिंदुत्ववादी रुख से वे असहज हो सकते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह ऐतिहासिक मिलन महाराष्ट्र की राजनीति में कौन से नए समीकरण और गठबंधन बनाता है।

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