संसद के मॉनसून सत्र में विपक्षी दलों ने एक बार फिर बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के मुद्दे पर चर्चा की मांग की, लेकिन सरकार ने इस पर चर्चा से इनकार कर दिया है। सरकार ने इसके लिए 25 साल पहले के एक संसदीय रिकॉर्ड का हवाला दिया है।
सरकार ने क्यों दिया 25 साल पहले वाली बात का हवाला?
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने विपक्षी सांसदों की मांग का जवाब देते हुए कहा कि चुनाव आयोग एक स्वतंत्र संवैधानिक निकाय है, और इसके कामकाज पर सदन में चर्चा नहीं की जा सकती। उन्होंने पूर्व लोकसभा स्पीकर बलराम जाखड़ के 25 साल पहले के एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने इसी तरह के मुद्दे पर चर्चा की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। जाखड़ ने तब कहा था कि एक संवैधानिक संस्था पर चर्चा संभव नहीं है, क्योंकि उसका पक्ष रखने के लिए सदन में कोई प्रतिनिधि मौजूद नहीं होता है।
सरकार का रुख
सरकारी सूत्रों ने बताया कि एसआईआर (Special Intensive Revision) एक प्रशासनिक प्रक्रिया है, कोई बड़ा नीतिगत बदलाव नहीं। इसके अलावा, चूंकि यह मामला अदालत में विचाराधीन है, इसलिए भी इस पर चर्चा नहीं हो सकती है। सरकार का यह भी कहना है कि वे हर मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार हैं, लेकिन विपक्ष लगातार संसदीय प्रक्रियाओं को बाधित कर रहा है।
विपक्ष की मांग
विपक्ष का आरोप है कि बिहार में मतदाता सूची से लाखों वोटरों के नाम गलत तरीके से काटे जा रहे हैं, जो कि लोकतंत्र के लिए खतरा है। उनका मानना है कि यह एक राजनीतिक साजिश है, और वे इस मुद्दे पर तुरंत चर्चा चाहते हैं। विपक्ष ने लोकसभा स्पीकर को एक चिट्ठी भी लिखी है, जिसमें उन्होंने एसआईआर पर विशेष चर्चा की मांग की है। इस मुद्दे पर सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध बना हुआ है, जिससे संसद की कार्यवाही लगातार बाधित हो रही है।