राजस्थान के अजमेर शरीफ दरगाह पर अब विवाद खड़ा हो गया है। अजमेर दरगाह में शिव मंदिर होने का दावा किया गया है। स्थानीय अदालत द्वारा दावा करने वाले मुकदमे पर नोटिस जारी करने के निर्देश दिए गए हैं। इस पर अखिल भारतीय सूफी सज्जादानशीन परिषद के अध्यक्ष सैयद नसरुद्दीन चिश्ती ने कहा कि संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किए गए हैं। दरगाह समिति, एएसआई और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को नोटिस दिए गए हैं। मैं ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का वंशज हूं, लेकिन मुझे इसमें पक्ष नहीं बनाया गया है। हम अपनी कानूनी टीम के संपर्क में हैं।
अजमेर का 850 साल पुराना इतिहास
चिश्ती ने कहा कि देश में ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं। यह हमारे समाज और देश के हित में नहीं हैं। अजमेर का 850 साल पुराना इतिहास है। मैं भारत सरकार से इसमें हस्तक्षेप करने की अपील करता हूं। उन्होंने कहा कि एक नया कानून बनाया जाना चाहिए और दिशा-निर्देश जारी किए जाने चाहिए ताकि कोई भी इन जैसे धार्मिक संगठनों पर दावा न कर सके।
यह है पूरा मामला
अजमेर की सिविल कोर्ट में याचिका हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने दायर की है। याचिका में भगवान महादेव का मंदिर होने का दावा किया गया है। उनका कहना है कि अजमेर शरीफ दरगाह को भगवान श्री संकटमोचन महादेव विराजमान मंदिर घोषित किया जाए। दरगाह समिति के अनाधिकृत अवैध कब्जे को हटाया जाए। विष्णु गुप्ता के वकील ने कोर्ट में हरविलास शारदा की किताब अजमेर ऐतिहासिक और वर्णनात्मक के अलावा भारत में सूफ़ीवाद का इतिहास जैसी किताबों का हवाला दिया है। हरविलास शारदा एक जज थे और उन्होंने 1911 में एक किताब अजमेर : हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव लिखी थी। गर्भगृह और परिसर में एक जैन मंदिर होने की बात भी अदालत में रखी गई। याचिका में दरगाह परिसर का एएसआई से सर्वे कराने की अपील की है। दावा है कि यह दरगाह मंदिर के खंडहरों पर बनाई गई है। मांग की गई कि जिस अधिनियम के तहत दरगाह संचालित होती है उसे अमान्य घोषित किया जाए। यहां हिंदुओं को पूजा का अधिकार दिया जाए। विष्णु गुप्ता के वकील शशिरंजन के मुताबिक वादी ने दो साल तक इस पर शोध किया था और इसये निष्कर्ष निकला है कि वहां एक शिव मंदिर था जिसे मुस्लिम आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया था और फिर एक दरगाह बनाई गई थी। अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी।