22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के न्योते को कांग्रेस ने ठुकरी दिया है। सात दशक पहले सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन समारोह से तब कांग्रेस नेतृत्व ने किनारा कर लिया। यह नहीं तब के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद को मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल होने से रोका था। उस समय दोनों के बीच खुलकर मतभेद सामने आ गए थे।
तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल ने मंदिर के पुनरुत्थान का बीड़ा उठाया था
11 मई 1951 को गुजरात में सोमनाथ मंदिर का उद्घाटन होना था। मुगल काल में आक्रमणकारियों ने 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक सोमनाथ मंदिर को कई बार तहस-नहस किया था। औरंगजेब के आदेश पर इसे ढहा दिया गया था। आजादी के बाद इसका दोबारा पुनर्निर्माण हुआ। तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने मंदिर के पुनरुत्थान का बीड़ा उठाया। 11 मई 1951 को भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर में ज्योतिर्लिंग को स्थापित किया था। कार्यक्रम में राजेंद्र प्रसाद के शामिल होने पर तब नेहरू ने आपत्ति जताई थी। नेहरू ने इस कार्यक्रम में शामिल होने से साफ मना कर दिया था। यही नहीं उन्होंने ने राजेंद्र प्रसाद को चिी लिखकर नाखुशी जाहिर की थी। उनसे यह भी कहा था कि वे भी कार्यक्रम में शामिल न हों। पंडित नेहरू ने यह लिखा था सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम से पहले नेहरू ने तत्कालीन राष्ट्रपति को चिी लिखी थी। उन्होंने लिखा था- अगर आपको लगता है कि निमंत्रण अस्वीकार करना आपके लिए सही नहीं होगा तो मैं दबाव नहीं डालूंगा। यह सरकारी कार्यक्रम नहीं है। लिहाजा, इसमें आपको नहीं जाना चाहिए। दरअसल, पंडित नेहरू नहीं चाहते थे कि राष्ट्रपति पद पर रहते हुए डॉ राजेंद्र प्रसाद किसी धार्मिक कार्यक्रम का हिस्सा बनें। नेहरू को लगता था कि इससे जनता में गलत मैसेज जाएगा। लेकिन डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू की एक नहीं सुनी और सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल हुए।
डॉ. प्रसाद ने भी दिया था जवाब-
नेहरू की चि_ी के जवाब में डॉ राजेंद्र प्रसाद ने भी पत्र लिखा था। प्रसाद ने लिखा था- मैं अपने धर्म को बहुत मानता हूं और इससे खुद को अलग नहीं कर सकता। उन्होंने सोमनाथ जाकर शिवलिंग की स्थापना भी की। दरअसल तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का प्रस्ताव रखा था। तब उन्होंने महात्मा गांधी को पत्र लिखा था। गांधी ने इस प्रस्ताव की सराहना की थी। लेकिन शर्त रखी थी कि इसमें सरकारी धन खर्च नहीं होना चाहिए। पटेल ने इस शर्त का पालन किया था। तब ट्रस्ट के माध्यम से आम जनता के सहयोग से मंदिर का जीर्णोद्धार कर भव्य स्वरूप दिया गया था।
सोमनाथ मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में भी हुआ था राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री में टकराव
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