भारत अपनी वायुसेना की ताकत में एक क्रांतिकारी बदलाव लाने के लिए तैयार है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित ‘अस्त्र एमके-3’ मिसाइल, जिसे ‘गांडीव’ नाम दिया गया है, अब लगभग तैयार है। यह अत्याधुनिक हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल (BVRAAM – Beyond Visual Range Air-to-Air Missile) भारतीय वायुसेना को एक ऐसी क्षमता प्रदान करेगी, जिससे अमेरिका और चीन जैसे देशों को भी टक्कर दी जा सकेगी।
अभूतपूर्व रेंज: अस्त्र एमके-3 मिसाइल 340 किलोमीटर तक मार कर सकती है। यह इसे दुनिया की सबसे लंबी दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों में से एक बनाती है। यह चीन की पीएल-15 (300 किलोमीटर) और अमेरिका की एआईएम-174 बीवीआरएएएम (240 किलोमीटर) से कहीं ज्यादा बेहतर है। 20 किलोमीटर की ऊंचाई से लॉन्च होने पर यह 340 किलोमीटर तक के लक्ष्य को भेद सकती है, जबकि 8 किलोमीटर की कम ऊंचाई से लॉन्च होने पर इसकी रेंज 190 किलोमीटर तक होती है।
- एडवांस सीकर टेक्नोलॉजी: अस्त्र एमके-3 में अत्याधुनिक गैलियम नाइट्राइड (GaN) आधारित एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड एरे (AESA) सीकर लगा होगा। यह सीकर उच्च तापमान पर भी बेहतर प्रदर्शन करता है और इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग (ECM) के खिलाफ अत्यधिक मजबूत होता है। इसे विशेष रूप से चीनी J-20 जैसे पांचवीं पीढ़ी के स्टील्थ लड़ाकू विमानों को भेदने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- रामजेट इंजन: यह मिसाइल एक सॉलिड फ्यूल डक्टेड रामजेट (SFDR) इंजन द्वारा संचालित है, जो इसे हवा में अत्यधिक गति (मैक 4.5 तक) बनाए रखने और लंबी दूरी तक उड़ान भरने में सक्षम बनाता है। यह इंजन वायुमंडलीय ऑक्सीजन का उपयोग करता है, जिससे मिसाइल हल्की और अधिक कुशल बनती है।
- नो-एस्केप ज़ोन (NEZ): अस्त्र एमके-3 का नो-एस्केप ज़ोन (वह क्षेत्र जहां से लक्ष्य बच नहीं सकता) 100 किलोमीटर से अधिक होने का दावा किया गया है, जो इसे बेहद घातक बनाता है।
- बहुमुखी क्षमता: ‘गांडीव’ दुश्मन के लड़ाकू विमानों, बॉम्बर, सैन्य परिवहन विमानों, रीफ्यूलिंग विमानों और एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम (AWACS) जैसे विभिन्न हवाई खतरों को निशाना बनाने में सक्षम है।
वर्तमान स्थिति और भविष्य की योजनाएं: अस्त्र एमके-3 का विकास अब अपने अंतिम चरण में है और इसे जल्द ही डेवलपमेंटल ट्रायल के लिए भेजा जाएगा। दिसंबर 2024 में, DRDO ने ओडिशा के एकीकृत परीक्षण रेंज में SFDR प्रणोदन प्रणाली का सफलतापूर्वक परीक्षण किया था। वर्तमान में, मिसाइल कैप्टिव कैरिज ट्रायल से गुजर रही है, जहां इसे सुखोई Su-30MKI लड़ाकू विमान पर लगाकर उसके एकीकरण का परीक्षण किया जा रहा है। अगला चरण लाइव-फायर ट्रायल का होगा। DRDO का लक्ष्य 2030-2031 तक इसका पूर्ण पैमाने पर उत्पादन शुरू करना है।
अस्त्र एमके-3 का भारतीय वायुसेना में शामिल होना देश की हवाई युद्ध क्षमता में एक गेम-चेंजर साबित होगा और भारत को रक्षा क्षेत्र में एक अग्रणी वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करेगा। यह स्वदेशीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो भारत को विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम करने में मदद करेगा।