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    रेज़ांग ला की गाथा: 120 बहादुरों का आखिर तक संघर्ष, गोलियां खत्म हुई तो पत्थरों से लड़ा

    ​1962 के भारत-चीन युद्ध को अक्सर भारतीय सेना के लिए एक निराशाजनक अध्याय के रूप में याद किया जाता है, लेकिन इसी युद्ध के दौरान लद्दाख की बर्फीली ऊँचाइयों पर एक ऐसी लड़ाई लड़ी गई, जिसने भारतीय शौर्य की मिसाल कायम कर दी—यह थी रेज़ांग ला की लड़ाई

    ⚔️ 3,000 के मुकाबले सिर्फ 120

    ​18 नवंबर, 1962 की कड़ाके की ठंड में, जब तापमान शून्य से भी नीचे था, लद्दाख में 16,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित रेज़ांग ला दर्रे की रक्षा की जिम्मेदारी 13 कुमाऊं रेजिमेंट की चार्ली कंपनी के 120 जवानों पर थी। इस कंपनी का नेतृत्व मेजर शैतान सिंह कर रहे थे, जिन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

    ​आधी रात के बाद, लगभग 3,000 से 5,000 चीनी सैनिकों ने हमला बोल दिया। भारतीय सैनिकों के पास न तो पर्याप्त गोला-बारूद था और न ही ऊँचाई के कारण तोपखाने का समर्थन मिल सकता था। मगर, अहीरवाल क्षेत्र के इन बहादुर जवानों ने अपनी आखिरी सांस और आखिरी गोली तक लड़ने का प्रण लिया।

    🔥 पत्थरों से लड़ा युद्ध

    ​मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में, चार्ली कंपनी ने वीरता का ऐसा प्रदर्शन किया कि चीनी सेना के 1,300 से अधिक सैनिक मारे गए। जब गोला-बारूद खत्म हो गया, तो जवानों ने अपनी राइफल के बट और पत्थरों से चीनी सैनिकों पर हमला किया। हर भारतीय जवान ने कई गुना अधिक चीनी सैनिकों को मार गिराया।

    ​इस भीषण संघर्ष में, चार्ली कंपनी के 120 जवानों में से 114 सैनिक देश के लिए शहीद हो गए। युद्ध के मैदान में बाद में जो दृश्य मिला, वह भारतीय सेना के अदम्य साहस को दर्शाता था—सैनिक अपनी राइफलों को थामे हुए, बर्फ में जमे हुए थे, एक को तो हाथ में ग्रेनेड लिए पाया गया।

    🐕 निहाल सिंह को मिला ‘टॉमी’ का सहारा

    ​रेज़ांग ला की लड़ाई में जिंदा बचे केवल छह सैनिकों में से एक थे, हवलदार निहाल सिंह। लड़ाई के दौरान गंभीर रूप से घायल होने के बाद, उन्हें चीनी सैनिकों ने पकड़ लिया था। निहाल सिंह ने कैद से भागने का फैसला किया।

    ​एक रात, जब चीनी सैनिक किसी बहस में उलझे थे, निहाल सिंह मौका देखकर भाग निकले। उनके दोनों हाथों से खून बह रहा था और वे लगभग 500 मीटर दूर निकल गए थे। तभी अंधेरे और बर्फ़ीले तूफान में उन्हें एक साथी मिला—वह था एक आवारा कुत्ता

    ​निहाल सिंह ने उसे प्यार से ‘टॉमी’ नाम दिया था। वह कुत्ता, जिसे भारतीय जवान अक्सर खाना खिलाते थे, निहाल सिंह को अपनी सेंट (खुशबू) से पहचान कर उनके पास आया। निहाल सिंह को सहारा देते हुए वह कुत्ता आगे-आगे चलने लगा, और उसकी मदद से निहाल सिंह बर्फ़ीली पगडंडियों से भटकने से बच गए और कुछ घंटों बाद बटालियन मुख्यालय तक पहुँचने में सफल रहे। निहाल सिंह आज भी उस कुत्ते को अपनी जान बचाने वाला साथी मानते हैं।

    ​रेज़ांग ला की यह अमर कहानी आज भी हर भारतीय को देश के प्रति समर्पण और बहादुरी का पाठ सिखाती है।

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