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    अंग्रेजों की ताबूत में आखिरी कील, भारत छोड़ो बन गया था जनआंदोलन


    भारत छोड़ो आंदोलन के आज 83 साल पूरे हो गए हैं। 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के लिए ‘करो या मरो’ का नारा दिया था, जिसके बाद यह आंदोलन शुरू हुआ था। इस आंदोलन को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का आखिरी और सबसे बड़ा जन आंदोलन माना जाता है।

    इस आंदोलन में भारतीय महिलाओं ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अहम भूमिका निभाई थी। महिलाओं ने न सिर्फ सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किए, बल्कि कई क्रांतिकारी गतिविधियों में भी भाग लिया। अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी और ऊषा मेहता जैसी महिला नेताओं ने गुप्त रेडियो स्टेशनों का संचालन किया, जो आंदोलन को जारी रखने में महत्वपूर्ण था।

    मातंगिनी हाजरा जैसी 73 वर्षीय महिला ने भी जुलूस का नेतृत्व करते हुए शहादत दी, जिन्हें ‘गांधी बूढ़ी’ के नाम से भी जाना जाता था। कनकलता बरुआ ने भी असम में तिरंगा फहराते हुए अपनी जान कुर्बान कर दी थी। इन महिलाओं ने पारंपरिक सामाजिक सीमाओं को तोड़ते हुए अपनी नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन किया, जिससे आंदोलन को एक नई दिशा और ताकत मिली।

    भारत छोड़ो आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की निर्णायक भूमिका को साबित किया। यह आंदोलन न केवल ब्रिटिश राज के खिलाफ एक शक्तिशाली विरोध था, बल्कि यह भारतीय समाज में महिलाओं की बढ़ती राजनीतिक चेतना और भागीदारी का भी प्रतीक बन गया।

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