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    2004 की तरह हुआ भाजपा का हाल.. चुनाव में नुकसान की ये हैं वजहें

    भाजपा ने 2004 में शाइनिंग इंडिया का नारा दिया था। तब कांग्रेस ने इसे आड़े हाथों लेते हुए देश की हकीकत बताई। भाजपा को उम्मीद थी अटल जी की अगुवाई में फिर से सरकार बनेगी, लेकिन कांग्रेस नीत यूपीए की सरकार बन गई। तब भाजपा 160 सीटें ही जीत पाई। फिर 10 साल तक मनमोहन ङ्क्षसह की अगुवाई में कांग्रेस ने यूपीए की सरकार चलाई। 2014 आते-आते हवाओं का रुख बदला और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की एंट्री हुई। भाजपा ने उन्हें पीएम पद का उम्मीदवार बनाया और नतीजा यह हुआ कि भाजपा अपने दम पर बहुमत पा गई। 2019 में भी यही हुआ और भाजपा ने प्रचंड बहुमत से सरकार बना ली। लेकिन 2024 में अति उत्साह में भाजपा गलती कर बैठी और नतीजा यह हुआ कि खुद के दम पर बहुमत नहीं मिल पाया। भले ही एनडीए 297 सीटों पर बढ़त बना चुका है, लेकिन जिस तरह के नतीजे आए उससे भाजपाइयों में मायूसी भी है।

    मुजरा, मुसलमान, मस्जिद और संविधान से बदला माहौल?

    राजनीतिक पंडित बताते हैं कि इस बार कोई लहर नहीं थी। भाजपा ने जोड़तोड़, तोडफ़ोड़ की रणनीति अपनाई जो महाराष्ट्र के लोगों को रास नहीं आई। चुनाव आते-आते पीएम मोदी ने मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा उठाया। डर दिखाया कि कांग्रेस आई तो राम मंदिर में बाबरी ताला लग जाएगा। उन्होंने अपने भाषण में मुजरा, मुसलमान, मस्जिद का कई बार उपयोग किया। वहीं कांग्रेस ने लोगों को डर दिखाया कि अगर भाजपा या एनडीए को 400 सीटें मिल गईं तो संविधान बदल दिया जाएगा। गरीब तबके और दलितों में यह डर काम कर गया और बीजेपी को देशभर और खासतौर पर उत्तर प्रदेश में हार का सामना करना पड़ा। राहुल गांधी के संविधान की किताब को हाथ में भाषण देने से भी चुनावी माहौल बदला।

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