बिहार में आशा और ममता कार्यकर्ताओं का मानदेय दोगुना करने के नीतीश सरकार के फैसले पर अब सियासी घमासान तेज हो गया है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता और विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने इस कदम को आगामी विधानसभा चुनाव से जोड़ते हुए सरकार पर निशाना साधा है।
तेजस्वी यादव ने पटना में पत्रकारों से बातचीत में कहा, “सरकार का डर देखकर अच्छा लगता है। जब चुनाव करीब आता है तो इन्हें गरीब और मजदूरों की याद आती है।” उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा-जदयू गठबंधन सरकार ने पिछले कई सालों में इन कार्यकर्ताओं की मांगों पर ध्यान नहीं दिया और अब जब चुनाव नजदीक हैं, तो वे वोट हासिल करने के लिए ऐसे फैसले ले रहे हैं।
तेजस्वी ने याद दिलाया कि इन कार्यकर्ताओं ने अपने मानदेय में वृद्धि के लिए कई बार आंदोलन किए, लेकिन तब सरकार ने उनकी सुध नहीं ली। उन्होंने कहा कि यह फैसला इन मेहनती कार्यकर्ताओं के संघर्ष का नतीजा है, न कि सरकार की नेक नीयती का।
वहीं, सत्तारूढ़ जनता दल (यूनाइटेड) ने तेजस्वी के आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि यह फैसला आशा और ममता कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम और जन स्वास्थ्य सेवाओं में उनके महत्वपूर्ण योगदान को मान्यता देने के लिए लिया गया है। जदयू नेताओं का कहना है कि सरकार हमेशा से गरीबों और वंचितों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध रही है और यह फैसला इसी दिशा में उठाया गया है।
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार का यह कदम एक बड़ा ‘मास्टरस्ट्रोक’ माना जा रहा है, जिसका सीधा असर ग्रामीण इलाकों की लाखों महिला मतदाताओं पर पड़ेगा। हालांकि, तेजस्वी यादव की प्रतिक्रिया ने साफ कर दिया है कि विपक्ष इसे चुनावी दांव से ज्यादा कुछ नहीं मानता और इसे लेकर राजनीतिक गलियारों में बयानबाजी जारी रहेगी।


