बांग्लादेश की राजनीति में एक बड़ा मोड़ आ गया है। 17 साल के लंबे निर्वासन के बाद बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के कार्यकारी अध्यक्ष तारिक रहमान 25 दिसंबर 2025 को ढाका वापस लौट आए हैं। उनकी यह वापसी न केवल उनकी पार्टी के लिए संजीवनी की तरह है, बल्कि आगामी 12 फरवरी 2026 के चुनावों के मद्देनजर पूरे दक्षिण एशिया की भू-राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण है।
पूर्व भारतीय राजदूत विद्या भूषण सोनी के विश्लेषण के आधार पर, उनकी वापसी के मुख्य पहलुओं को नीचे समझा जा सकता है:
1. घरेलू राजनीति पर प्रभाव: “होमकमिंग” का सियासी फायदा
तारिक रहमान की वापसी BNP कार्यकर्ताओं में भारी उत्साह भरने वाली है। उनकी माता और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की खराब सेहत के कारण, पार्टी को एक मजबूत नेतृत्व की कमी खल रही थी।
- चुनाव पर असर: फरवरी में होने वाले चुनावों से ठीक 50 दिन पहले उनकी वापसी ने BNP को चुनावी मैदान में सबसे मजबूत दावेदार बना दिया है।
- कानूनी बाधाएं: शेख हसीना के कार्यकाल के दौरान उन पर लगे ग्रेनेड हमले और भ्रष्टाचार के कई आरोपों में वे हाल ही में बरी हुए हैं, जिसने उनकी सुरक्षित वापसी का रास्ता साफ किया।
2. भारत के लिए कूटनीतिक चुनौतियां और संकेत
पूर्व भारतीय राजदूतों के अनुसार, तारिक रहमान का भारत के प्रति रुख ऐतिहासिक रूप से “जटिल” रहा है। हालांकि, हालिया बयानों में उन्होंने कुछ नए संकेत दिए हैं:
- “बांग्लादेश फर्स्ट” की नीति: रहमान ने नारा दिया है— “ना दिल्ली, ना पिंडी (रावलपिंडी), सबसे पहले बांग्लादेश।” यह दर्शाता है कि वे पाकिस्तान की ओर झुकाव की छवि को तोड़ना चाहते हैं और भारत के साथ एक संतुलित “हितों पर आधारित” रिश्ता बनाना चाहते हैं।
- सुरक्षा चिंताएं: भारत के लिए मुख्य चिंता यह है कि BNP के शासन में पूर्व में कट्टरपंथी तत्वों को जो बढ़ावा मिला था, क्या वह फिर से सक्रिय होंगे? राजदूतों का मानना है कि यूनुस सरकार फिलहाल कट्टरपंथियों को नियंत्रित करने में संघर्ष कर रही है, और रहमान की वापसी के बाद स्थिरता एक बड़ी चुनौती होगी।
3. भविष्य की रूपरेखा: युवा बनाम इतिहास
तारिक रहमान के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी पुरानी छवि (भ्रष्टाचार और ‘हवा भवन’ विवाद) से बाहर निकलकर खुद को एक आधुनिक और समावेशी नेता के रूप में पेश करना है। उन्हें उस युवा पीढ़ी को आकर्षित करना होगा जिसने 2024 के जन-विद्रोह का नेतृत्व किया था।


