अमेरिका की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए, ब्रिक्स (BRICS) देशों के समूह ने आपसी व्यापार में स्थानीय मुद्राओं के इस्तेमाल और एक स्वतंत्र भुगतान प्रणाली विकसित करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है। ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में इस मुद्दे पर गहन चर्चा हुई, जिससे वैश्विक वित्तीय परिदृश्य में बड़ा बदलाव आने की उम्मीद है। यह कदम भारत के लिए विशेष रूप से फायदेमंद साबित हो सकता है। कुल मिलाकर, ब्रिक्स देशों द्वारा आपसी लेनदेन पर आगे बढ़ना एक बड़ा कदम है जो वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए नए समीकरण तय कर सकता है और भारत को आर्थिक रूप से अधिक स्वायत्त बनाने में मदद करेगा।
स्थानीय मुद्रा में व्यापार: BRICS का बढ़ता संकल्प
ब्रिक्स देशों, जिसमें ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं, ने लंबे समय से अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने की वकालत की है। इस शिखर सम्मेलन में इस दिशा में ठोस कदम उठाए गए हैं। समूह ने एक तेज, कम लागत वाली, अधिक सुलभ, कुशल, पारदर्शी और सुरक्षित क्रॉस-बॉर्डर पेमेंट सिस्टम बनाने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। इसका सीधा अर्थ है कि सदस्य देश अब व्यापार और निवेश के लिए अपनी-अपनी स्थानीय मुद्राओं का अधिक उपयोग कर सकेंगे।
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी ब्रिक्स देशों के लिए एक ‘स्वतंत्र भुगतान प्रणाली’ की वकालत की है, जिससे व्यापार को बढ़ावा मिल सके। यह दिखाता है कि सदस्य देश पश्चिमी देशों के प्रभुत्व वाले वित्तीय संस्थानों के बाहर एक वैकल्पिक व्यवस्था बनाने के लिए गंभीर हैं।
भारत को कैसे मिलेगा बड़ा फायदा?
डॉलर पर निर्भरता में कमी: स्थानीय मुद्राओं में व्यापार करने से भारत की अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम होगी। इससे डॉलर के उतार-चढ़ाव से होने वाले व्यापार घाटे और विनिमय दर जोखिमों को कम किया जा सकेगा, जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अधिक स्थिरता आएगी।
- यूपीआई का विस्तार: भारत ने अपनी सफल यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) प्रणाली को कई देशों के साथ साझा करने की पेशकश की है। ब्रिक्स देशों के बीच एक इंटरऑपरेबिलिटी पेमेंट सिस्टम बनने से UPI जैसी भारतीय तकनीकों को वैश्विक स्तर पर विस्तार मिल सकता है, जिससे लेनदेन और आसान हो जाएंगे।
- व्यापार लागत में कमी: क्रॉस-बॉर्डर भुगतान को सरल और सस्ता बनाने से व्यवसायों, खासकर छोटे और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार करना आसान हो जाएगा। इससे व्यापार की लागत कम होगी और व्यापार की मात्रा बढ़ेगी।
- भू-राजनीतिक संतुलन: ब्रिक्स में भारत की बढ़ती भूमिका उसे बहुध्रुवीय विश्व में एक मजबूत स्थिति प्रदान करती है। यह पश्चिमी देशों पर पूरी तरह निर्भर हुए बिना विकासशील देशों के साथ मिलकर वैश्विक नेतृत्व की ओर कदम बढ़ाने का अवसर देता है।
- निर्यात को बढ़ावा: जब स्थानीय मुद्राओं में लेनदेन आसान होगा, तो भारतीय निर्यातकों को अपने सामान बेचने में आसानी होगी और उन्हें विदेशी मुद्रा जोखिमों से भी बचाया जा सकेगा।