इतिहासकारों का मानना है कि सैयद सालार मसूद गाजी, महमूद गजनवी के सेनापति और उसके भांजा था। अपने मामा की तरह सालार गाजी भी दिल्ली, मेरठ, बुलंदशहर, बदायूं और कन्नौज के राजाओं को रौंदता हुआ देवस्थानों को ध्वस्त करता हुआ बाराबंकी तक आ गया था। उस समय वह बहराइच पर आक्रमण कर अयोध्या पहुंचना चाहता था। बात 1034 ईसवी की है। उस समय कौशल के महाराजा सुहेलदेव ने उसकी एक लाख 30 हजार की सेना को खत्म कर दिया और गाजी की हत्या कर दी। अब सैयद सालार मसूद गाजी की याद में लगने वाले नेजा मेले पर सियासत गर्मा गई है, लेकिन प्रशासन ने इसकी अनुमति नहीं दी है।
कुछ आक्रमणकारी तो कुछ मानते हैं सूफी संत
सैयद सालार मसूद गाजी को गाजी मियां के नाम से भी जाने जाते हैं। वे 11वीं सदी का एक मुगल योद्धा थे और वह महमूद गजनवी का भांजे और सेनापति थे। गाजी का जन्म 1014 ईस्वी में अजमेर में हुआ और उसकी मृत्यु 1034 ईस्वी में बहराइच में हुई थी। उनके युद्ध में राजा सुहेलदेव से मृत्यु की जानकारी है। हालांकि उसे लेकर इतिहासकारों में मतभेद है। कुछ उन्हें आक्रमणकारी मानते हैं, तो कुछ सूफी संत। उनकी दरगाह उत्तर प्रदेश के बहराइच में स्थित है, जहाँ हर साल मेला लगता है। सैयद सालार मसूद गाजी का नाम इतिहास में उनकी सैन्य अभियानों और धार्मिक महत्व के कारण जाना जाता है।