इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है, जिसमें कहा गया था कि नाबालिग लडक़ी के स्तनों को पकडऩा, उसके पायजामे का नाड़ा तोडऩा और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना बलात्कार या बलात्कार के प्रयास के अपराध के अंतर्गत नहीं आएगा। न्यायमूर्ति बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह एक गंभीर मामला है और फैसला सुनाने वाले न्यायाधीश की ओर से पूरी तरह असंवेदनशीलता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि यह निर्णय लिखने वाले की ओर से संवेदनशीलता की पूर्ण कमी को दर्शाता है।
हाईकोर्ट ने दी थी अजीब दलील
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उप्र की एक नाबालिग लडक़ी के साथ हुए यौन उत्पीडऩ के मामले में विवादास्पद फैसला सुनाया था। अदालत ने कहा कि पीडि़ता के कपड़े फाडऩा, उसके निजी अंगों को छूना और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना बलात्कार या बलात्कार के प्रयास के अपराध के अंतर्गत नहीं आता है। अदालत ने फैसले में कहा कि बलात्कार के लिए आवश्यक तत्व यह है कि पुरुष का प्राइवेट पार्ट महिला के प्राइवेट पार्ट में प्रवेश करना चाहिए। चूँकि इस मामले में ऐसा नहीं हुआ, इसलिए इसे बलात्कार नहीं माना जा सकता। अदालत के इस फैसले की जमकर आलोचना हुई है। महिला अधिकार संगठनों और कानूनी विशेषज्ञों ने इस फैसले को प्रतिगामी और महिला विरोधी बताया है। यह फैसला यौन हिंसा के पीडि़तों को न्याय से वंचित करता है। दरअसल निर्भया मामले के बाद, सरकार ने आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 पारित किया। इस अधिनियम ने बलात्कार की परिभाषा को व्यापक बनाया और इसमें यौन उत्पीडऩ और यौन हमला जैसे अपराध भी शामिल किए गए।