यह कहानी है महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव के दादासाहेब भगत की, जिन्होंने इन्फोसिस में एक ऑफिस बॉय (चपरासी) के रूप में काम करना शुरू किया और अपनी मेहनत के दम पर आज वह अपनी कंपनी ‘Design Template’ के सीईओ बन गए हैं। उनकी सफलता की कहानी की सराहना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कर चुके हैं। आज उनकी कंपनी हजारों डिजाइनर्स को प्लेटफॉर्म दे रही है और भारत को डिजिटल डिजाइन में आत्मनिर्भर बना रही है।
संघर्ष की गाथा:
- शुरुआती जीवन: दादासाहेब भगत महाराष्ट्र के बीड के एक सूखाग्रस्त गांव से आते हैं। परिवार में शिक्षा को प्राथमिकता नहीं दी जाती थी, इसलिए उन्होंने केवल दसवीं तक पढ़ाई की और फिर आईटीआई का कोर्स किया।
- पुणे में शुरुआत: नौकरी की तलाश में वह पुणे आए और उन्हें पहली नौकरी एक चपरासी की मिली, जहाँ उन्हें केवल ₹4,000 महीने की सैलरी मिलती थी।
- इन्फोसिस में ऑफिस बॉय: बाद में, उन्हें इन्फोसिस में ऑफिस बॉय की नौकरी मिली, जहाँ उन्हें ₹9,000 सैलरी मिलती थी। इन्फोसिस में ही उन्होंने पहली बार कंप्यूटर देखा और समझा कि शारीरिक मेहनत के बजाय डिजिटल रूप से भी कमाई की जा सकती है।
- सीखा डिजाइनिंग: वे इंजीनियर्स से कंप्यूटर के बारे में सवाल पूछते थे। एक इंजीनियर ने उन्हें ग्राफिक्स डिजाइन के बारे में बताया। भगत ने बचपन में भित्ति चित्र (म्यूरल) बनाए थे, इसलिए उन्होंने ग्राफिक्स डिजाइन को उससे जोड़ा।
- यूट्यूब से शिक्षा: दिन में ऑफिस बॉय की नौकरी करने के बाद, वह रात में मोबाइल पर यूट्यूब ट्यूटोरियल और फ्री प्रोग्राम की मदद से ग्राफिक डिजाइनिंग सीखने लगे। एक साल से भी कम समय में, वह ऑफिस बॉय से ग्राफिक डिज़ाइनर बन गए।
खुद की कंपनी और बड़ी सफलता:
- उन्होंने फ्रीलांस डिज़ाइनर के रूप में काम करना शुरू किया और बाद में अपनी खुद की कंपनी शुरू की।
- कोविड-19 महामारी के दौरान उन्हें अपना काम बंद करके गाँव लौटना पड़ा।
- गाँव में, उन्होंने पहाड़ी के पास एक छोटा ऑफिस बनाकर ‘Design Template’ नामक स्टार्टअप शुरू किया। यह कंपनी आज कैनवा जैसे इंटरनेशनल डिजाइन प्लेटफॉर्म्स को टक्कर दे रही है।
- उनकी इस सफलता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ध्यान खींचा, जिन्होंने ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत उनकी सराहना की।
- दादासाहेब भगत ने शार्क टैंक इंडिया में भी भाग लिया, जहाँ उन्होंने boAt के अमन गुप्ता के साथ ₹1 करोड़ में 10% इक्विटी का सौदा किया।


