सुप्रीम कोर्ट ने अशोका विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की अंतरिम जमानत बढ़ा दी है। उन्हें हाल ही में भारतीय सेना के ऑपरेशन सिंदूर से संबंधित सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर गिरफ्तार किया गया था। यह विवादित पोस्ट भारतीय सेना द्वारा किए गए एक महत्वपूर्ण सैन्य अभियान के संदर्भ में थी। प्रोफेसर महमूदाबाद को हरियाणा पुलिस ने दिल्ली से गिरफ्तार किया था। उनके खिलाफ दो अलग-अलग एफआईआर दर्ज की गई थीं, जिनमें आरोप लगाया गया था कि उनकी टिप्पणियां भारत की संप्रभुता, एकता और सशस्त्र बलों में महिलाओं की भूमिका को लेकर अपमानजनक थीं। इन पोस्ट्स को ऑपरेशन सिंदूर पर प्रेस ब्रीफिंग करने वाली कर्नल सोफिया कुरैशी के बारे में उनकी टिप्पणी से जोड़ा गया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि उनसे पीसी कराना महज एक दिखावा और ढोंग है।
हर किसी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर महमूदाबाद की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्हें अंतरिम जमानत दी थी। सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर महमूदाबाद के शब्दों के चयन पर भी सवाल उठाया और कहा था कि उनका इस्तेमाल दूसरों को अपमानित करने, उनका अपमान करने और उन्हें असहज स्थिति में डालने के लिए किया गया। कोर्ट ने यह भी कहा कि हालांकि हर किसी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है, लेकिन महमूदाबाद के बयानों को कानून की नजर में डॉग व्हिसलिंग कहा जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने का भी आदेश दिया था, जिसमें एक महिला अधिकारी को भी शामिल किया जाएगा। SIT सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के समर्थन में अशोका विश्वविद्यालय के छात्रों ने भी विरोध प्रदर्शन किए हैं, जहां उन्होंने प्रोफेसर को हटाने की मांग की है। यह पूरा मामला सार्वजनिक जीवन में शब्दों के चयन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं पर एक बड़ी बहस को जन्म दे रहा है।