ऑस्ट्रेलिया में किशोरों के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध एक महत्वपूर्ण कदम है जिसे सरकार बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और विकास को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से उठा रही है। यह दुनिया के सबसे सख्त कानूनों में से एक है।
क्यों लागू होगा?
ऑस्ट्रेलियाई सरकार का मानना है कि सोशल मीडिया किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है, जिसमें लत, साइबरबुलिंग, हानिकारक सामग्री के संपर्क में आना, नींद की समस्या और सामाजिक कौशल में कमी शामिल है। प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने कई मौकों पर कहा है कि बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है। सरकार का तर्क है कि प्रौद्योगिकी कंपनियां शक्तिशाली एल्गोरिदम का उपयोग करती हैं जो उपयोगकर्ताओं को ऐसे व्यवहार में शामिल होने के लिए उकसाती हैं जो समाज के लिए हानिकारक हो सकते हैं।
कब लागू होगा?
ऑस्ट्रेलियाई संसद ने पहले ही इस संबंध में एक विधेयक पारित कर दिया है, जो अब कानून बन गया है। अधिकांश प्रतिबंध दिसंबर 2025 से लागू होंगे। सोशल मीडिया कंपनियों को नए नियमों का पालन करने और उम्र सत्यापन के लिए उन्नत तकनीक का उपयोग करने के लिए 1 साल का समय दिया गया था।
कैसे लागू होगा?
इस कानून के तहत, 16 साल से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपना अकाउंट बनाने की अनुमति नहीं होगी। सोशल मीडिया कंपनियों को यह सुनिश्चित करने के लिए उन्नत सत्यापन तकनीक का उपयोग करना होगा कि नाबालिग इन प्लेटफॉर्म तक पहुंच न सकें। यदि कोई कंपनी इन नियमों का पालन करने में विफल रहती है, तो उस पर भारी जुर्माना लगाया जा सकता है। यह प्रतिबंध बच्चों के माता-पिता पर भी जिम्मेदारी डालता है कि वे अपने बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखें।
कौन से प्लेटफॉर्म्स पर होगी पाबंदी?
शुरुआत में, प्रतिबंध मुख्य रूप से उन प्लेटफॉर्म्स पर केंद्रित था जो किशोरों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय हैं और जिनके हानिकारक प्रभावों की पहचान की गई है। इनमें शामिल हैं:
- फेसबुक (Facebook)
- इंस्टाग्राम (Instagram)
- टिकटॉक (TikTok)
- स्नैपचैट (Snapchat)
- एक्स (X, पूर्व में ट्विटर)
हाल ही में, ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने यूट्यूब (YouTube) को भी प्रतिबंधित प्लेटफॉर्म की सूची में शामिल करने का फैसला किया है। सरकार के अनुसार, YouTube पर 37% किशोरों ने हानिकारक सामग्री देखी, जिसके बाद यह कदम उठाया गया।
किसे छूट मिलेगी?
व्हाट्सएप जैसी मैसेजिंग सेवाओं, किड्स हेल्पलाइन जैसी ऑनलाइन सेवाओं और शैक्षिक उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाने वाले ऐप्स को इन प्रतिबंधों से छूट दी गई है।
यह कदम डिजिटल युग में बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और इससे दुनिया के अन्य देशों में भी इसी तरह के कानूनों पर बहस छिड़ सकती है।